स्वामी रामतीर्थ जब सैनफ्रान्सिस्को में थे, तब ‘एनी’ नामक एक महिला उनके पास आयी और हृदयविदारक क्रन्दन करती हुई बोली, ‘प्रभो, मैं बहुत दुःखी हूँ | मेरा बच्चा जानलेवा बुखार से चल बसा है, कृपया उसे वापस दिला दें|’
स्वामीजी बोले, ‘माता, मैं तुम्हारा बच्चा वापस ला दूँगा | साथ ही तुम्हारा दुःख दूर करने के लिए आनंद का मंत्र भी दूँगा, किन्तु तुम्हें उसके लिए कीमत चुकानी होगी |’
आवेश में वह दुःखिनी बोली, “ स्वामीजी, मेरे बच्चे के लिए चाहे जितनी भी कीमत चुकानी पड़े, मैं पीछे न हटूंगी | मेरे पास धन-दौलत की कमी नहीं, आप जो माँगे, मैं दूँगी |’’
स्वामीजी बोले, ‘राम के परमानन्द साम्राज्य में इस दौलत की कुछ कीमत नहीं | राम इससे भी बड़ी कीमत माँगता है |’
‘स्वामीजी, मैं हर कीमत पर वह आनंद प्राप्त करना चाहती हूँ |’- बह स्त्री बोली |
“तो फिर राम के साम्राज्य में आनंद का अभाव ही कहाँ ?’’- कहते हुए स्वामीजी उसे एक अत्यन्त निर्धन बस्ती में ले गये और एक अनाथ हब्शी बालक का हाथ पकड़कर कहा, “यह रहा तुम्हारा बच्चा! माता, इसे गोद ले लो | यह स्वयं राम का आत्म-स्वरुप है | इसे पुत्रवत पालना | तू इसको जितना लाड करेगी, तेरे सुख का दरिया उतना ही उमड़-उमड़कर बहेगा |’’
स्वामीजी के इन शब्दों में विश्व के समस्त उपेक्षितों, मातृहीनों एवं भूखों को अपने आलिंगन में समेट लेने वाला स्नेह बरस रहा था | उनके मुख पर ईश्वरीय आभा खेल रही थी | पराये दुःख-दर्द को अपनाकर उसमें अपना खोया आनंद-धन पा लेने का गुरुमंत्र एनी के हाथ में लग गया | उसके गोरेपन का गर्व गल गया | उच्चता के अभिमान की दीवार ढह गयी | उस धूलि-धूसरित हब्शी बालक को उसने अपनी कोख से जन्मे बच्चे की तरह छाती से चिपका लिया | उसका श्मशान-सदृश घर फिर निश्छल हास्य की किल-कारियों से गूंज उठा |