हिंदी साहित्य के द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी जिन्हें मास्टरजी के नाम से जाने जाते है बख्शी जी हिंदी साहित्य के प्रमुख निबंधकार थे | बख्शी जी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़ में हुआ था । बख्शी जी के माता पिता दोनों ही साहित्य प्रेमी थे | परिवार के साहित्यिक वातावरण के प्रभाव के कारण ये विद्यार्थी जीवन से ही कविताएं रचते थे। बी.ए. पास करते ही इन्होंने ‘सरस्वती’ में अपनी रचनाएं प्रकाशित करना प्रारंभ किया। बाद में ‘सरस्वती’ के अतिरिक्त अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी।
बख्शी जी की गणना द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। बख्शी जी विशेष रूप से अपने ललित निबंधों के लिए स्मरण किए जाते हैं। ये एक विशेष शैली कार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विषयों में उच्च कोटि के निबंध लिखे हैं। राजनांदगांव की हिंदी त्रिवेणी की तीन धाराओं में से एक हैं। राजनांदगांव के त्रिवेणी परिसर में इनके सम्मान में मूर्तियों की स्थापना की गई है|
1961 में बी. ए. की उपाधि प्राप्त की । इसी वर्ष उनकी झलमला नामक कहानी सरस्वती में प्रकाशित हुई । 1960 में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति पं. द्वारका प्रसाद मिश्र उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई ।
अध्ययन, अध्यापन, लेखन, संपादन व सर्वोपरि शिक्षकीय कार्य पर गर्व करने वाले साहित्य साधक बख्शी जी की अभिलाषा यही रही कि अगले जन्म में भी मास्टर बनूं । बख्शी जी ने राजनांदगांव के स्टेट स्कूल, कांकेर हाई स्कूल, खैरागढ़ के हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में अपनी सारस्वत सेवाएं दी । दिग्विजय महाविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे । इस बीच उनका सृजन कर्म निरंतर प्रशस्त्र होता रहा ।
बख्शी जी की कृतियों का विवरण इस प्रकार है-
निबंध संग्रह- ‘प्रबंध पारिजात’ , ‘पंचपात्र’ , ‘पदमवन’ , ‘मकरंद बिंदु’ , ‘कुछ बिखरे पन्ने’ आदि।
कहानी संग्रह- ‘झलमला’ , ‘अंजलि’ ।
आलोचना- ‘विश्व साहित्य’ , ‘हिंदी साहित्य विमर्श’ , ‘साहित्य शिक्षा’ , ‘हिंदी उपन्यास साहित्य’ , ‘हिंदी कहानी साहित्य’ ।
अनुवाद- ‘प्रायश्चित’ , ‘उन्मुक्ति का बंधन’ ।
काव्य-संग्रह- ‘सतदल’ , ‘अश्रु दल’ ।
बख्शी जी मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन में सभापति (1950) रहे, 1951 में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में जबलपुर में आपका सार्वजनिक अभिनन्दन, 1964 में 70वें जन्मदिन पर छात्रों द्वारा अभिनंदन किया गया । 1968 में उन्हें मध्यप्रदेश शासन द्वारा विशेष सम्मान प्रदान किया गया, सहज, सरल व आत्मीय व्यक्तित्व के प्रतिमान संत साहित्यकार बख्शी जी ने 28 दिसम्बर 1971 को पूर्वान्ह 11:25 बजे रायपुर के डी. के. हॉस्पिटल में अंतिम सांसे लीं ।