छत्तीसगढ़ के महान संत गुरू घासीदास। गुरु घासीदास जी द्वारा प्रतिपादित समानता और मानव अधिकार पर आधारित सभी सिद्धांत आज भी मानव जीवन के लिए बेहतरी सार्थकता है; उनके सिद्धांत युगों युगों तक प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने कभी किसी गुरू से शिक्षा नहीं ली ,कहां जाता है कि गुरु घासीदास को ज्ञान की प्राप्ति रायगड जिले के सारंगढ तहसील के एक पेड़ के नीचें तपस्या से प्राप्त हुआ | जप- तप- ध्यान और सतकर्मों के साथ उन्होंने लोगों के समक्ष एक दिव्य गुरू के रूप में खुद को स्थापित किया। उनके समय लाखों लोग उनके अनुयायी बने और आज भी उनके वंशज गुरु घासीदास के बताए रास्ते पर ही चलते हैं। संत गुरु घासीदास जी द्वारा बताया गया रास्ता था कि अपना कर्म ही अपने जीवन तथा परिवार की उन्नति हो सकती है |
जात पात मानय नहीं ,सत के महिमा गाय।
पावन जेखर आचरण, वो सतनामी आय।1।
नशापान अब बंद कर , मांसाहार ल त्याग।
ज्ञान गुरु के हे इही , सतनामी तँय जाग।2।
मनखे आघू झन नवव, करव सिरिफ सम्मान।
जात पात ला त्याग के, सत बर दे दव जान।3।
अमरौतिन के लाल तँय ,मँहगू के संतान ।
जनम धरे सतकाज बर, बाँटे सत के ज्ञान।4।
जैतखाम सत बर खड़े,धजा स्वेत लहराय।
गिरौदपुर के धाम हर , सत के जस बगराय।5।
कपट करे मा साधना, अउ लालच मा त्याग।
भोग करे महिमा घटय ,मोह मया बैराग ।6।
सत बर देथे प्रान ला , तप बर त्यागे भोग।
साधक बाबा के सरल, जिनगी उंखरे जोग ।7।
चमत्कार तो ज्ञान हे, दिये गुरु बगराय।
ठगनी जग ठगता फिरय, निज स्वार्थ बिलमाय ।