ज्वर को आज कोई शिकार नहीं मिला था| वह बेचैनी से अपने शिकार की तलाश में था| उसने एक घर में झांककर देखा| अरे, घर के बाहर ताला और अंदर छोटा लाला| ज्वर को समझने में देर न लगी|
इस लड़के का नाम है अंकित| इसकी उम्र है आठ वर्ष| इसके मम्मी-पापा कहीं गए हैं| इसे घर मे ही बंद कर गए हैं| वे शाम को लौटेंगे| शाम तक अंकित घर में अकेला रहेगा| बस अब मुझे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं, आज का मेरा शिकार रहेगा अंकित|
ज्वर यह सोचकर जोर से हंसा| उसने घर की दीवार पार की और घर के आंगन मे पहुँच गया| वह जैसे ही खिड़की से अंदर जाने लगा, हवा ने उसे रोक दिया| हवा ने कहा- “अरे, शैतान ज्वर, कहां जाता है ? जानता नहीं यह किसका घर है ? यह घर मेरे मित्र का है| वह एक अच्छा बालक है| उसने आज तक किसी को नहीं सताया| वह हमेशा दूसरों की सहायता करता है| कक्षा में किसी से लड़ता नहीं |
सबको अपना मित्र समझता है| तूने अंकित को कष्ट देने की कोशिश की तो मैं तेरी बत्तीसी तोढ़ दूँगी, समझे!”
ज्वर कहां सुनने वाला था| हवा को उसने एक धक्का मारा| हवा दूर जा गिरि और वह खिड़की के रास्ते अंदर घुस गया| वह चिल्लाकर बोला- “मुझे धमकी देती है, अंकित मेरा शिकार है, आज देखना मेरा पारा 106 डिग्री पार कर जाएगा| मैं उसके दिमाग की नसों को फाड़कर उसे सदा के लिए सुला दूंगा|”
ज्वर जोर से हंसा और अंकित के कमरे में घुस गया| अंकित अपने मित्र को फोन कर रहा था| वह अंकित पर चढ़ बैठा| अंकित ने महसूस किया कि उसके सिर में हल्का-सा दर्द है| वह लेट गया| वह लेटा रहा| उसे लगा कि उसका शरीर धीरे-धीरे गर्म हो रहा है| उसने थर्मामीटर निकाला| उसे 102 डिग्री ज्वर था| वह परेशान हो उठा| उसने फ्रीज खोला| उसमें से बर्फ निकालकर माथे पर पट्टियाँ रखनी शुरू किं| ज्वर आने पर माँ ऐसा ही किया करती है| पट्टियों से उसका ज्वर एक डिग्री कम हो गया|
अब ज्वर ने अंकित के घर की बिजली काट दी| दो घंटे बाद उसे ठंठा पानी भी नहीं मिलेगा| ज्वर धीरे-धीरे अपना तापमान बढ़ाता जाएगा और शाम तक वह 106 डिग्री से ऊपर पहुंच जाएगा|
बिजली कट जाने से अंकित की बेचैनी बढ़ने लगी| उसने अपने मित्र से मदद लेने के लिए फोन किया | अभी वह अपनी बात कह भी नहीं पाया था कि ज्वर ने फोन भी काट दिया | अंकित ने थर्मामीटर लगाकर देखा कि ज्वर 104 डिग्री तक पहुंच चुका था |
अंकित बेचैनी में करवटें बदलने लगा| वह क्या करे| वह कहीं जा भी नहीं सकता था| बाहर से ताला लगा है| इतने में ‘खटाक’ से खिड़की खुली| खिड़की से ठंडी हवा अंदर आई| अंकित को थोड़ी राहत मिली| उसने महसूस किया कि उसका ज्वर कम हो रहा है|
ज्वर क्रोध मे भरकर हवा से कहने लगा– “तू फिर आ गई | मैं अब अपनी गर्म डिग्री बढ़ाता हूं| तेरी ठंडक कुछ नहीं कर पाएगी |”
अंकित के सिर का दर्द बढ़ने लगा| खिड़की से आ रही ठंडी हवा ने भी अपनी ठंडक बढ़ा दी| ज्वर और हवा में कई घंटे ऐसे ही मुक़ाबला चलता रहा| शाम के चार बज चूके थे| छ्ह बजे उसके मम्मी-पापा आ पहुंचे| उन्होने अंकित को ज्वर से ग्रस्त देखा तो उसे लेकर वे तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचे डॉक्टर ने ज्वर नाशक औषधि दी जिससे ज्वर तुरंत ही अंकित को अपने पंजे से मुक्त करने के लिए मजबूत हो गया| इस प्रकार हवा ने अंकित को अच्छा बालक होने के कारण ज्वर का शिकार नहीं होने दिया|