वर्धमान महावीर से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया,”गुरुदेव, मनुष्य के अध:पतन का क्या कारण है और उससे अपनी मुक्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए?”
महावीर बोले,”यदि कोई कमंडलु भारी हो और उसने पानी भी अधिक मात्रा में समा सकता हो, तो क्या वह खाली अवस्था में नदी में छोड़ा जाने पर डूबेगा?”
”कदापि नहीं!” – उस शिष्य ने जवाब दिया |
”यदि उसके दाईं और एक छिद्र हो तो क्या उस अवस्था में भी वह तैर सकता है?”
”नहीं, वह डूब जावेगा |”
”और छिद्र बाईं ओर हो तो ?”
”छिद्र बाईं ओर हो या दाईं ओर; छिद्र कहीं भी हो, पानी उसमें प्रवेश करेगा और अन्तत: वह डूब ही जावेगा |”
”तो बस यह जान लो कि मानव-जीवन भी कमंडलु के ही समान है| उसमें यदि कोई दुर्गुणरूपी छिद्र हुआ तो समझ लो कि वह टिकनेवाला नहीं| क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, अहंकार ये सारे दुर्गुण मनुष्य को डुबोने में कारणीभूत हो सकते हैं, इसलिए हमें सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे जीवनरूपी कमंडलु में कोई दुर्गुणरूपी छिद्र तो जन्म नहीं ले रहा है | और यदि हमने उसी समय उसे उभरने नहीं दिया, तो जान लो कि हमारा जीवन निष्कंटक रहेगा और हमें हर चीज सुलभता से प्राप्त होगी |”