मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती की रूप में मनाया जाता है | पौराणिक कथा के अनुसार 24 अवतारों में भगवान दत्तात्रेय का यह छटवां अवतार माना जाता है |इस दिन भगवान ब्रम्हा,विष्णु और भगवान शिव के अंश भगवन दत्तात्रेय का जन्मोत्सव मनाया जाता है | दत्तात्रेय भगवान त्रिदेव का रूप है | जो दत्तात्रेय जयंती को इन तीन देवताओं के बाल रूपों को पूजा जाता है | भगवान दत्तात्रेय का 700 साल पुराना मंदिर इंदौर में स्थित है, जहां दर्शन करने के लिए भक्त दूर-दूर से दर्शन करने के लिए पहुंचते है |
पौराणिक कथा के अनुसार
एक बार देवर्षि नारद ने त्रिदेवों की पत्नियों माता लक्ष्मी,माँ पार्वती और माँ सरस्वती की परीक्षा लेने उनके पास पहुंचे और कहा कि मैंने समस्त बब्राम्हण में अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसुइया जैसे पतिव्रता स्त्री कोई नहीं है | तीनों देवियों को अनुसुइया की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी | और अनुसुइया के इर्षा करने लगे और उन्होंने अनुसुइया के पतिव्रता को भंग करने की सोची और अपने अपने पतियों से अनुसुइया का धर्म भंग करने को कहती है | ब्रम्हा,विष्णु और भगवान शिव ने पत्नियों के कहे अनुसार उन्होंने एक भिक्षुक का रूप धारण कर अनुसुइया के आश्रम में आकार देवी अनुसुइया को खाना खिलने को कहते है | उनका शर्त यह था की वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन करवाएं | अनुसूया ने अपनी तप के बल से उनसब की माया समझ गयी। वह भीतर चली गयी और अपने अराध्य पति का चरणोदक लाकर उन तीनों के ऊपर छिड़क दिया| जिससे तीनों देव बालक के रूप में परिवर्तन हो गए | तब माता अनुसुइया ने उन्हें दूध पिलाकर पालने में सुला दिया |
काफी दिन बीत जाने के बाद जब ब्रम्हा ,विष्णु और भगवान शंकर के वापस न लौटने पर तो त्रिदेवियां अनुसुइया के आश्रम पहुंचीं और माफ़ी माँगा और अपने पतियों को पुनः उसी रूप में लेन को कहा |
देवियों कि सारी बात जानने के बाद माता अनसूया ने अपने पतिव्रत धर्म के तपोबल से तीनों देवों को पूर्व रूप में कर दिया। जिससे प्रसन्न होकर त्रिदोवों ने माता अनसूया से वर मांगने को कहा, तो माता अनसूया बोली हे नाथ मुझे आप तीनों की ही पुत्र रूप में प्राप्ति हो, अनुसुइया द्वारा वर मांगने पर त्रिदेव ने वरदान दी कर अपनी देवियों के साथ वहां से चले गए। कुछ समय बाद यही तीनों देव माता अनुसुइया के गर्भ से प्रकट हुए, जिन्हें दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता है |
पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साफ वस्त्र धारण करें और नए व शुद्ध आसन पर भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें। आसन का रंग सफेद होना चाहिए। इसके बाद उनका गंगाजल से अभिषेक करें और सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें। फिर धूप-दीप जलाकर पूजा करें और मीठे का भोग लगाएं।