मूलराज एक दयालु बालक था | उसकी उम्र नौ वर्ष थी | उसके पिता का नाम राजा भीमदेव था | वे गुजरात के राजा थे | राजा भीमदेव मूलराज को बहुत प्यार करते थें | वे मूलराज की हर बात मानते थे | एक दिन मूलराज अपने मित्रों के साथ बाग में खेल रहा था | अचानक उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी | वह वहां गया | उसने देखा कि राजा के सिपाही कुछ लोगों को जंजीरों में बांधकर ले जा रहे हैं | उनके बच्चे रो रहे हैं| ये सब किसान थे | इन किसानों ने राजा को कर के रूप में अपने खेतों में से गेहूं नहीं दिए थे | इस साल वर्षा नहीं हुई थी,इसलिए खेतों में अनाज नहीं उगा था | किसान गेहूं कहां से देते | मूलराज से किसानों के बच्चों का रोना न देखा गया |
वह अपने पिता के पास गया | उसके कहा- “पिताजी, आज मैं आपसे कुछ मांगता हूँ |”
राजा ने कहा-“हम तुम्हें वही देंगे जो तुम मांगोगे, बस हमें घोड़े पर चढ़कर निशाना लगाकर दिखा दो |”
मूलराज ने पिता की बात मान ली और महल के बाहर चला गया | मूलराज को घुड़सवारी पसंद नहीं थी, परन्तु उसने घुड़सवारी सीखी| वह एक महीनें तक निशाना लगाने का प्रयास करता रहा| नौ वर्ष के बालक ने मन लगाकर दिन-रात मेहनत की| जब भी वह आराम करता, उसे किसानों के बच्चों के रोने की आवाजें आतीं | वह फिर मैदान में चला जाता |
एक महीने बाद एक मेला लगा | उसमें बहुत-से घुड़सवार आए | मूलराज भी अपने घोड़े पर चढ़कर धनुष-बाण हाथ में लेकर आया | उसने कई निशाने लगाए | महाराज यह देखकर चकित हो गये | उन्होंने कहा-“मूलराज, तुमने अपना कहा पूरा किया| मांगों, क्या मांगते हो|”
मूलराज ने कहा-“महाराज, उन बंदी किसानों को छोड़ दीजिए, उनका कोई दोष नहीं है | बरसात न होने से उनके खेतों में आनाज नहीं उगा तो वे आपको कहां से देते |”
मूलराज की दूसरों की भलाई की बात सुनकर महाराज की आँखों में आंसू आ गये | उन्होंने मूलराज को गले से लगा लिया| राजा ने वैसा ही किया, जैसा मूलराज ने कहा| सभी ने मूलराज की प्रशंसा की |