दुराचारी च दुर्दृष्टिदुर्रावासी च दुर्जन: |
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिभर्नर: शीघ्र विनश्यति ||
यहां आचार्य चाणक्य दुष्कर्म के परिणाम के प्रति सचेत करते हुए कह रहे हैं कि दुराचारी, दुष्ट स्वभाववाला, बिना किसी कारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है क्योंकि संगति का प्रभाव बिना पड़े नहीं रहता है|
यह उक्ति तो प्रसिद्ध है ही कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है | इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति दुष्ट व्यक्तियों के साथ रहता है तो उनकी संगति का प्रभाव उस पर अवश्य पड़ेगा | दुर्जनों के संग में रहनेवाला व्यक्ति अवश्य दुःखी होगा | इसी बात को ध्यान में रखकर तुलसीदासजी ने भी कहा है–‘दुर्जन संग न देह विधाता| इससे भलो नरक का वासा ||’ इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह कुसंगति से बचे|