दिनेश कुमार ने अपने घर का दरवाजा खोला तो सामने एक साधु को खड़े पाया | साधु मुस्करा रहे थे| उसने पूछा – “क्या बात है ?”
साधु ने कहा – “बच्चा तुम देख सकते हो कि मैं एक साधु हूँ| साधु को भोजन के अतिरिक्त किसी चीज की इच्छा नहीं रहती|”
दिनेश को अपने पिता की बात याद आ गई|
एक बार एक चोर साधु के वेश में घर में घुसकर बहुत-सा सामान लूटकर ले गया था| दिनेश ने कहा- “मैं देख रहा हूँ कि आपकी वेशभूषा साधु की है, परन्तु आप साधु नहीं हैं | साधु के रूप में आप एक चोर भी हो सकते हैं |’’
दिनेश की बात सुनकर साधु मुस्कुराया| उसने अपनी झोली में हाथ डाला और एक ऐनक निकाली| उसने कहा – “तुम ठीक कहते हो बच्चा| लो, यह ऐनक लो और लगाकर देखो|’’
दिनेश ने ऐनक लगाई| दिनेश ने देखा कि साधु उसे एक दिव्य पुरुष के रूप में दिखाई दिए, उनके मुस्कुराते हुए चेहरे पर तेज था–“अब उधर देख, बच्चा |’’
दिनेश ने सड़क की ओर देखना शुरू किया| यह क्या! वहां चलते हुए लोग उसे तरह-तरह के जानवर दिखाई देने लगे|
उनके चेहरे जानवरों के थे| शेष शरीर आदमी का ही था| उसने एक साइकिल सवार को देखा| उसका चेहरा बकरे का था| एक आदमी कार चला रहा था, उसका चेहरा भेड़िए का था| एक लड़की सड़क किनारे-किनारे चली जा रही थी| उसका चेहरा गाय का था|
“शेर, शेर|’’ दिनेश चिल्लाया | उसने ट्रक चलाते एक आदमी को देखा, उसका चेहरा शेर का था | वह डर गया उसने आंखों पर से ऐनक हटा ली| वह मुड़ा, लेकिन साधु वहां नहीं थे |
दिनेश ने ऐनक छिपाकर अपने बैग में रख दी| उसने ऐनक के विषय में किसी को नहीं बताया| वह सोचता रहा| एसा क्यों है! उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था | वह साधु महराज से पूछना चाहता था, पर साधु महाराज तो गायब हो गये थे|
शाम को उसके पिता जी से कुछ लोग मिलने आए| वे उसके पिता जी से बड़ी मीठी- मीठी बातें कर रहे थे| वे पिताजी से एक फाइल पर हस्ताक्षर कराना चाहते थे| पिताजी के एक दोस्त ने उनसे कहा– “मित्र, कुछ भी नहीं होगा| ये बहुत अच्छे आदमी हैं| मैं इन्हें अच्छी तरह जनता हूं| तुम हस्ताक्षर कर दो|”
दिनेश ने तुरंत यही ऐनक निकाली| ऐनक लगाते ही उन सबके चेहरे बदल गए| दिनेश ने देखा कि पिताजी का चेहरा सियार का था, अन्य लोगों ने भेड़िए के चेहरे लगाए हुए थे |
मित्र के बहुत कहने पर पिताजी ने कलम निकाली और हस्ताक्षर करने लगे| दिनेश ने तुरंत जाकर पिताजी का हाथ पकड़ लिया| सब एक साथ बोले- “क्या बात है ?’’
दिनेश ने कहा -पिताजी आप इस फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे| दिनेश अपने पिताजी का हाथ पकड़कर अंदर अंदर ले गया | वे जाना नहीं चाहते थे, पर दिनेश नहीं माना | वे लोग जल्दी से वहां से खिसक गए |
अगले दिन पिताजी ऑफिस से आकर माताजी से कह रहे थे- “अच्छा हुआ कि दिनेश ने मुझे हस्ताक्षर नहीं करने दिए | मेरी तो नौकरी चली गई होती | मेरा दोस्त ही मुझे फंसवा रहा था |’’
दिनेश ने चैन की साँस ली| साधु महाराज ने एक बड़ी मुसीबत से उन्हें बचा लिया | अब उसे समझ आ गया कि ऐनक से जानवर का चेहरा क्यों दिखाई देता है | जैसा आदमी का स्वभाव होगा वैसा ही उसका चेहरा ऐनक में दिखाई देगा|
दिनेश ऐनक लगाकर अपनी कक्षा का फोटो देखने लगा| उसकी नजर अपनी ही फोटो पर पड़ी, उसने देखा कि उसके दांत बाहर निकले हुए हैं| उसके कान बड़े-बड़े हैं| उसकी आंखें छोटी-छोटी चोर की तरह हैं| वह डर गया| उसने ऐनक उतार ली और सोचने लगा|
उसे अपने किए कर्म याद आने लगे| उसने पिछले वर्ष कई विद्यार्थियों को बिना कारण ही मारा था| कई की उसने पुस्तकें फाड़ी थीं | कई की उसने कलमें चुराकर तोड़कर फेंक डी थीं |
अपनी अध्यापिका से गृह कार्य न करने पर भी झूठ बोला था| कई बार झूठ बोलकर गृह कार्य पूरा किया था| परीक्षा में कई बार नकल की थी| दिनेश को महसूस हुआ कि इन्हीं कारणों से उसका असली रूप ऐसा बना है|
दिनेश एक के बाद एक बुरा काम छोड़ने लगा| वह अपने चेहरे को सुंदर बनाना चाहता था | उसने झूठ बोलना छोड़ दिया |
कभी-कभी उसे सत्य बोलने पर भी मार पड़ती, उसने मार भी खाई पर सत्य ही बोला| सभी सहपाठियों के साथ उसका स्वभाव नम्र हो गया | उसने अब वह झगड़ता नहीं बल्कि उनकी सहायता करता| अब उसका मन अच्छे कामों में ही लगता| हर रोज वह अपनी तस्वीर ऐनक लगाकर देखता| उसकी तस्वीर में सुधार हो रहा था| वह धीरे-धीरे सुंदर बनता जा रहा था|
लगभग एक वर्ष बाद वही साधु दिनेश के घर आए | दिनेश ने साधु के चरण छुए और उन्हें सम्मानपूर्वक अंदर ले आया| उन्हें भोजन करवाया |
विदाई के समय दिनेश ने उसके द्वारा दी गई ऐनक उन्हें लौटाते हुए कहा- “लीजिये साधु महात्मा, आपकी ऐनक|’’
साधु ने ऐनक ले ली और पहनकर दिनेश को देखा, उन्हें दिनेश दिव्य दिखाई पड़ रहा था| साधु मुस्कराए और बोले- “मुझे प्रसन्नता हुई है बालक, तुमने ऐनक से लाभ उठाया | लो अब यह ऐनक अपने पास ही रखो |’’
दिनेश ने ऐनक नहीं ली | वह बोला- “महाराज अब मुझे ऐनक की आवश्यकता नहीं है| मैं ऐनक के बिना ही लोगों को पहचानने लगा हूं| आपने मेरी आँखों को दिव्य प्रकाश दे दिया है|’’
साधु ने बालक दिनेश के सिर पर हाथ फेरा और मुस्कराते हुए चले गये |