भारत में मंदिरों की भरमार है , जो अपने आप में ही अद्भुत, रहस्यों से भरा और चमत्कारी मंदिरे है | ऐसी ही एक मंदिर है माउंट आबू से 11 किलोमीटर की दूरी पर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का मंदिर है |यह 15वीं शताब्दी में मेवाड़ शासन राणा कुंभा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया | यहां गर्भगृह में स्वंयभू शिवलिंग पातालखंड के रूप में मौजूद है। इस मंदिर में शिवजी के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है | ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस पर्वत को अपने दाहिने अंगूठे से थाम कर रखे है |
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माउन्टआबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रम्ह खाई हुआ करती थी | इस खाई में ऋषि वशिष्ठ की गाय गिर जाती थी | समस्या को लेकर ऋषियों ने देवतओं से इस खाई को बंद करने की गुहार लगाई | ताकि आश्रमों में पल रहे गायों का जीवन बचाया जा सके |
ऋषियों के आग्रह पर देवताओं ने नंदिवर्धन को उस ब्रम्ह खाई में बंद करने का आदेश दिया | जिसे अबुर्द नामक सांप ने अपने पीठ पर रखकर खाई तक पहुचाया था | लेकिन अबुर्द सांप को इस बात का अहंकार हो गया था की उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर उठा रखा हैऔर उसे अधिक महत्व भी नही दिया जा रहा है | इस कारण वह हिलने-डुलने लगा जिसकी वजह से पूरा पर्वत हिलने लगा था , जिससे उथल-पुथल मच गया था |
महादेव के पैर के अंगूठे से स्थिर हुआ पर्वत
महादेव ने अपने भक्तों की पुकार सुन उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को स्थिर किया | और अबुर्द सांप की अहंकार चकनाचूर हो गया | कहा जाता है कि पर्वत को अचल करने से इसका नाम अचलगढ़ पड़ा | और तभी से अचलेश्वर महादेव के रूप में यहाँ शिव जी के अंगूठे की पूजा की जाती है |
रहस्य
महादेव के अंगूठे के नीचे एक गड्ढा है | इस गड्ढे को लेकर ऐसा माना जाता है कि कभी भी यह गड्ढा भरता नहीं है चाहे इसमें कितना भी पानी भरता रहे | इतना ही नहीं जो जल शिवजी पर चढ़ाया जाता है वह भी कभी नजर नहीं आता| आज तक किसी को नहीं पता चला कि यहां का पानी कहां चला जाता है |