विवाह की तैयारियां चल रही थीं | पूरा जंगल सजाया गया था | जिन पेड़ों में सुंदरता नहीं थी, उनकी टहनियों की हजामत बनाकर पेड़ में सुंदरता लाई थी | जो पौधे फूलों के लिए सदा तरसते थे, उन्हें फूलों से लाद दिया गया था | ऐसा प्रतीत होता था, मानो इन पौधों पर लगे फुल इनके ही हैं | विषाक्त पेड़ों से खटटे फल तोड़ दिया गए थे | मीठे आमों के साथ-साथ गुलाब के फुल लगाए गए | अंगूरों के गुच्छों के पास-पास चमेली के फूलों को ऐसे चिपका दिया गया था | मानों अंगूरों की बेल ने ही उन्हें जन्म दिया हो | रात की रानी के फूल खजूर से न केवल सुगंध छोड़ रहे थे, बल्कि उसके सौंदर्य में चार चाँद भी लगा रहे थे | पूरा जंगल फलों, फूलों और सौंदर्य से दमक उठा था | हर वस्तु, हर स्थान अपने असलीपन को छोड़ सुंदर दिखाई दे रहा था |
वट के विशाल वृक्ष के नीचे मिठाइयां बन रही थीं | मिठाइयों की भीनी-भीनी सुगंध पुरे जंगल में व्याप्त थी | घर-घर इस सुगंध का पहुंचना ही सबके लिए निमंत्रण था | निमंत्रण पाकर सभी भोज में शामिल होने को व्याकुल थे |
ऊंट ने आज गहरे पानी में घुसकर स्नान किया | धूल धूल का एक भी कण वह अपने शरीर पर नहीं रहने देना चाहता था | उसके शरीर पर चंदन का लेप किया गया | उसके गले में मोतियों की माला पहनाई गई | उसके माथे पर रोली का टीका लगाया गया | उसके सिर पर मोर पंख शोभायमान था | उसकी लम्बी गर्दन को छिपाने के लिए पत्तों का बनाया सुंदर दुपट्टा लटका दिया गया था | उसकी आंखों पर कमल के चौड़े पत्तों का चश्मा बनाकर पहनाया गया था | ऊंट की सजावट में ऊंट, ऊंट,नहीं लग रहा था | यह सुनकर ऊंट फूला नहीं समता था |
मेहमानों का आना शुरू हुआ | सभी मुखौटे पहने हुए थे | जो वे वास्तव में थे, वे नहीं थे | आज उनके नकलीपन ने विधाता के विधान में परिवर्तन कर दिया था | सियारों ने भेड़ियों के और भेड़ियों ने शेरों के मुखौटे लगाए हुए थे | उनकी चाल में वेशभूषा के अनुसार परिवर्तन हो गया था | सियारों ने भेड़ियों के और भेड़ियों ने शेरों के मुखौटे लगाए हुए थे | उनकी आवाज मुखौटे के स्वर में निकलती थी | वे अपने इस नकलीपन पर गर्व कर रहे थे | अपने इस नकलीपन में वे इतने खो गये थे कि उन्हें नकलीपन अपना असलीपन प्रतीत हो रहा था | वास्तव में जो असली था, उसे वे भूल चूके थे |
अंत में मै आने वाले मेहमान थे गधा और कौआ, वे दोनों ऊंट के पक्के दोस्त थे| उनकी वेशभूषा विचित्र थी | गधे ने हाथी का मुखौटा तो लगा लिया था, पर वह अपनी टांगों के स्थान पर हाथी की मोटी टांगे नहीं लगा पाया था, इसलिए वह अपने आपको ही सुंदर लग रहा था | कौआ मोर के पंख लगाकर आया था | उसकी चोंच तोते की चोंच थी, जो साफ दिखाई दे रही थी | दोनों के पहुंचते ही ऊंट की बांछे खिल गईं | ऊंट ने गधे के कान में कुछ कहा | गधे ने कौवे की ओर देखा | कौवे ने इशारे से कहा की वे चिंता न करें, सब काम हो गया है |
जब भी मेहमान इकट्ठे हो गये तो गधे ने ऊंट से कहा- “मित्रवर ऊंट, आज तो तुम बहुत सुंदर लग रहे हो | ऐसा लगता है कि सभी स्वर्गवासियों को तुमने अपने घर बुला लिया है|”
गधे की बात सभी ध्यान से सुन रहे थे | ऊंट अपनी प्रशंसा सुन फूला न समा रहा था | उसका मुस्कराता हुआ चेहरा ऐसा लग रहा था मानो वह रो रहा हो | ऊंट के मुस्कराने पर सबने तालियां बजाई |
अब ऊंट बोला- “मित्र गर्दभ, आज सुंदरता में तुम भी कम नहीं हो | तुम्हारे गले में से तो तानसेन का सुर सुनाई देता है | जब तुम बोलते हो तो मधुमख्यियां तुम्हारे ऊपर मंडराने लगती हैं |”
कौवे से भी न रहा गया | वह गधे की प्रशंसा में बोला-“ इसके मधुर कंठ से मधुर स्वर सुनकर ही मैंने इन्हें गाना सिखाया | अभ्यास करते-करते इनके कंठ में इतनी मिठास पैदा हो गई कि इनके कंठ से मधुमक्खियां जन्म लेने लगी हैं | इनका गधारस विश्वविख्यात है | गर्दभ भाई, सुनाओ तो एक गीत |”
गधे ने कहते ही मुंह हिलाना शुरू किया | वास्वत में स्वर में मिठास थी | सभी आश्चर्य कर रहे थे कि ढेंचू-ढेंचू करने वाला गधा इतना सुंदर कैसे गा रहा है | गाना समाप्त हुआ, सभी ने तालियां बजाई, पर तालियों में से भी एक संदेह उभर रहा था | ऊंट सबसे अधिक प्रसन्न था | गधे जैसे सुरीले मित्र को पाकर वह गर्व महसूस कर रहा था |
जब भी भोजन करके चले गये तब गधे की असलियत का पता चला | जो गाना गधे ने गाया वह नर-कोयल का स्वर था | कौवे ने नर-कोयल को कैद करके उसे वटवृक्ष की डालियों में छिपा दिया था | उसके पास एक बिच्छु बिठा दिया गया था | गधे ने जैसे ही मुंह हिलाना शुरू किया, वैसे ही कौवे के इशारे पर बिच्छु ने अपना डंक निकाल लिया था | डंक के डर से नर-कोयल ने गीत गाया और गधे को प्रशंसा का पात्र बनाया | क्या नकलीपन में जीवन का सच्चा सुख है ?