एक किसान था | वह अपने खेत में खड़ी फसल काट रहा था| इस वर्ष उसकी फसल पिछले वर्ष की अपेक्षा बहुत अच्छी हुई थी | बीज तो अच्छा था ही, खेत पर उसने परिश्रम भी कम नहीं किया था | उसने खेत में गहराई तक हल चलाया | मिट्टी में खाद मिलाई | बीजों को उचित गहराई तक दबाया | समय पर खेत में पानी की सिंचाई की और जब बीजों से पौधे निकल आए तब उनकी देखभाल की | उन्हें कीड़ों से, पशु-पक्षियों से बचाया | आज उसे उस खेत को देखकर अपने परिश्रम पर गर्व हो रहा था | परिश्रम से मिला धन बिना परिश्रम से मिले धन से अधिक मूल्यवान होता है | परिश्रम से प्राप्त फल में मनुष्य संतोष और गर्व दोनों प्राप्त करता है|
‘अरे! हाथी उड़ने वाला हाथी! यह तो मेरे खेत में ही उतर गया | उसने मेरा खेत खाना शुरू कर दिया |’ किसान बड़बड़ाया |
“अरे भाई, कोई है | किसका है यह हाथी ? हटाओं इसे यहां से | यह मेरा खेत खाए जा रहा है |” किसान चिल्लाया |
किसान लाठी लेकर आगे बढ़ा कि पीछे से आवाज आई- “ रुक जाओ, हाथी को भागों नहीं | वह जितना खाता है खाने दो | यह हाथी स्वर्ग से आया है | इसे स्वर्ग में इतना अच्छा खेत नहीं मिला|”
किसान ने प्रार्थना की- “पर महाराज, यह मेरे पसीने की कमाई है |”
“तुम्हें तुम्हारी कमाई का पूरा मूल्य मिल जाएगा |” राजा ने उत्तर दिया |
किसान ने फिर कहा- “परन्तु माहाराज, इससे आपको क्या लाभ होगा ?
राजा आगे बढ़ता हुआ बोला- “होगा, बहुत लाभ होगा, पेट भरने के बाद जैसे ही हाथी उड़ेगा, मैं उसकी पूंछ पकड़ लूँगा और फिर हाथी मुझे उड़ाकर स्वर्ग में ले जाएगा | इस प्रकार मैं बिना तप के स्वर्ग पहुंच जाऊंगा |”
किसान राजा से कुछ पूछना चाहता था, पर नहीं पूछ सका | राजा हाथी की ओर बढ़ने लगा | किसान सोचने लगा | भला बिना परोपकार के आदमी स्वर्ग में कैसे पहुंच सकता है | उसने देखा कि वजीर चला आ रहा है | वजीर भी आगे बढ़ गया | अरे! यह क्या! किसान ने देखा कि राजा की तरह स्वर्ग जाने के लिए एक के बाद एक लोग चले आ रहे हैं | इनमें वैद्य, सेठ, सेनापति और कुछ साधु भी सी स्वर्ग की दौड़ में शामिल हैं |
सभी की इच्छा बिना परिश्रम के स्वर्ग को प्राप्त करने की है | किसान निर्णय लिया- ‘मैं इस छोटे रास्ते से स्वर्ग नहीं जाऊंगा | मुझे तो परिश्रम वाला रास्ता ही अच्छा लगता है |’
इस निर्णय के बाद वह अपने काम में जुट गया | लगभग आधे घंटे के बाद उसने हाथी के चिंघाड़ने की आवाज सुनी |
वह खड़ा होकर देखने लगा | अरे यह क्या! हाथी ने अपने पंख खोल दिए थे | वह आकाश की ओर उड़ने लगा था | राजा ने उसनके पूंछ दोनों हाथों से पकड़ी हुई थी | राजा बिना परिश्रम के स्वर्ग जा रहा था | हाथी थोड़ा और उड़ा | अरे भाई वाह!
राजा के पैर पकड़कर वजीर भी लटका है | यह तो पंक्ति ही बन गई है | वजीर के पैर पकड़कर सेठ, सेठ के पैर पकड़कर वैद्य, वैद्य के पैर पकड़कर सेनापति और सेनापति के बाद अनेक लोग एक के बाद एक लटके हैं | यह तो पतंग की पूंछ बन गई है | लगता है पूरा राज्य ही बिना परिश्रम के स्वर्ग जा रहा है | जाने दो, जाने दो, मैं अपना परिश्रम नहीं छोडूंगा | मेरा स्वर्ग तो यहीं है | मेरा काम ही मेरे लिए स्वर्ग है |
किसान फसल काट रहा था और राज्य के लोग स्वर्ग जा रहे थे | आचानक किसान को चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगीं |
राजा के हाथ से हाथी हाथी की पूंछ छुट गई थी | निकम्मों का राज्य नीचे आ गिरा |