फिरंगियों की बहुरंगी चालें देखकर भारतीय शासक और शासित त्रस्त थे | उनकी अनीति ने रानी लक्ष्मीबाई के मन में विद्रोह भर दिया और उन्होंने अपना सर्वस्व स्वदेश के लिए समर्पित कर दिया | उनकी वाणी में वीरों को उत्तेजित करने की अपूर्व शक्ति थी | हाथ में तलवार लिये, पीठ पर अपने नन्हें दत्तक पुत्र को बाँधे इस अश्वारोहिनी की विप्लव ज्वाला गाँव-गाँव और नगर-नगर में सुलग उठी- “हमारा ही हाल देखो ! ईस्ट इंडिया कम्पनी ने शपथ ली थी कि झाँसी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन इसका उन्होंने उल्लंघन किया | पूज्य पति के दुःखपूर्ण स्वर्गारोहण के उपरांत मैंने हिन्दू धर्मशास्त्रों की आज्ञा और मर्यादा के अनुसार एक बालक को गोद लिया, लेकिन कम्पनी के सौदागर- दलाल कहते हैं कि मैं ऐसा नहीं कर सकती! उन्होंने गोद को मान्यता नहीं दी और इसके विपरीत मुझे धमकियाँ देते हैं कि वे झाँसी छीन लेंगे | मैं नहीं जानती कि किस अधिकार से वे गीदड़-भभकियाँ दे रहे हैं | लेकिन झाँसी कोई लड्डू नहीं है कि डलहौजी इसे निगल जाये!
‘आप सब जानते हैं कि कम्पनी वालों ने छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित महान सातारा राज्य समाप्त कर दिया है | यह सब उन्होंने झूट और फरेब से किया है | वे इसीलिए सफल हुए कि हम सब बिखरे हुए हैं, और हममें आपस में फूट है | मैं स्पष्ट बताना चाहती हूँ कि यह जो फिरंगी अफसर झाँसी का कब्जा लेने आ रहा है, उसे खाली हाथ जाना होगा | मैंने उसे झाँसी कदापि न दूँगी | इसके पहले कि सौदागरों की ईस्ट इंडिया कम्पनी झाँसी पर अपना अधिकार जमाये, मैं अपनी देह की प्रत्येक बूंद उसकी रक्षा में बहा दूँगी |
‘मेरे लिए यह महान हर्ष का विषय होगा कि मेरे रक्त की प्रत्येक बूंद भारत की आजादी के लिए बहे और झाँसी मुक्ति-युद्ध का अजेय दुर्ग बन जाये, ताकि हमारा देश स्वतंत्रता- संग्राम कर सके | मैं भले ही अकेली रहूँ, मुझे साथी मिलें या न मिलें, पर मैं भयंकर युद्ध के लिए तत्पर हूँ और अंतिम समय तक फिरंगियों की दासता स्वीकार नहीं करूँगी | मेरे लिए आज एक ही रास्ता है और वह विद्रोह – आजादी के लिए विद्रोह | आज मेरे सामने एक ही मंजिल है- या तो महान विजय अथवा रणभूमि में मृत्यु | विजय या मौत! मौत या विजय!
भला इस ओजस्वी वाणी से किसका स्वाभिमान न जायेगा ?