पुनश्च विविधै: शीलैनिर्योज्य सततं बुधै: |
नीतिज्ञा शीलसम्प सम्पन्ना: भवन्ति कुलपूजिता: ||
आचार्य चाणक्य यहां पुत्र के संबंध में उपदेश करते हुए कहते हैं कि बुद्धिमान लोगों का कर्तव्य है कि पुत्र को सदा अनेक प्रकार से सदाचार की शिक्षा दें | नीतिज्ञ सदाचारी पुत्र ही कुल में पूजे जाते हैं | अर्थात् पिता का सबसे बड़ा कर्तव्य है कि पुत्र को अच्छी शिक्षा दे | शिक्षा केवल विद्यालय में ही नहीं होती | अच्छे आचरण की, व्यवहार की शिक्षा देना पिता का पावन कर्तव्य है | अच्छे आचरणवाले पुत्र ही अपने कुल का नाम ऊंचा करते हैं | नीतिज्ञ और शील सम्पन्न पुत्र ही कुल में सम्मान पाते हैं |
नेतागण कहा करते हैं कि आज के युवा ही कल के नागरिक हैं | वही देश के भविष्य हैं तो उनका सही भविष्य बनाने की दिशा में सही कदम उठाना माता-पिता और समाज का परम कर्तव्य है |
लालनाद बहवो दोषासताडनाद बहवो गुणा: |
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न टू लालयेत ||
आचार्य चाणक्य बालक के लालन-पालन में, लाड़-प्यार के सन्दर्भ में उसके अनुपात और सार के बारे में उपदेश करते हुए कहते हैं, कि अधिक लाड़ से अनेक दोष तथा ताड़न से गुण आते हैं | इसलिए पुत्र को और शिष्य को लालन की नहीं ताड़न से गुण आते हैं | इसलिए पुत्र को और शिष्य को लालन की नहीं ताड़न की आवश्यकता होती है |
अभिप्राय यह है कि अधिक लाड़-प्यार करने से बच्चे बिगड़ जाते हैं | उसके साथ सख्ती करने से ही वे सुधरते हैं | इसलिए बच्चों और शिष्य को अधिक लाड़-प्यार नहीं देना चाहिए | उनके साथ सख्ती ही करनी चाहिए |
इसलिए चाणक्य का परामर्श है कि माता-पिता अथवा गुरु को अपने पुत्र अथवा शिष्य का इस बात के लिए ध्यान रखना चाहिए कि उसमें कोई बुरी आदतें घर न कर जायें | उनसे बचाने के लिए उनकी ताड़ना आवश्यकता है, ताकि बच्चा गुणों की ओर आकर्षित हो और दोष ग्रहण से बचे |