रात के लगभग बारह बजे होंगे | दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं | बस्ती के दूसरे छोर पर चौकीदार की सीटी गूंज रही थी |
एक चोर सड़क से हटकर अँधेरे में चला आ रहा था | उसकी नजर घरों की बत्तियों पर थी | एक मकान के अंदर-बाहर बिल्कुल अंधेरा था | वह ठिठका | उसने इधर-उधर देखा| उसे कोई दिखाई नहीं दिया | वह दीवार फांदकर घर के बगीचे में पहुंचा | उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई | उसे बगीचे के कोने में कोई बैठा दिखाई दिया | उसने तुरंत अपना रामपुरी चाक़ू निकाल लिया | मुसीबत में यही चाकू उसके काम आता था | वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा | एक पेड़ की ओट में होकर वह बैठ गया | उसकी नजर अब उसी लड़के पर थी, पर यह क्या! लड़का तो गड्ढा खोद रहा था|
गड्ढा खोदने का काम पूरा हुआ | गड्ढा खोदने वाले ने टॉर्च जलाई | उसने पास पड़ी छोटी-सी संदूकची गड्ढे में रख दी | टॉर्च बंद करके वह गड्ढे में मिट्टी भरने लगा | गढ्ढा भरने के बाद उसने उसके ऊपर घास के तिनके बिखेर दिए | फिर वह वहां से उठा, उसने इधर- उधर देखा | उसे कोई दिखाई नहीं दिया | उसे वह चोर भी दिखाई नहीं दिया | वह मकान की ओर चल दिया | धीरे-से उसने मकान का दरवाजा खोला और अंदर घुस गया |
चोर सब कुछ समझ गया|
चोरों के डर से सोने के गहने छोटी-सी संदुकची में रखकर दबाए गए हैं, यह सोचकर चोर के मुंह में पानी भर आया| वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा| उसने उस जगह को पहचाना| वहां पीपल का एक पेड़ था| उसके नीचे छोटे-से मंदिर के सामने ही गड्ढा खोदकर संदूकची दबाया गया था, पर चोर को मंदिर से क्या लेना! उसने अपने रामपुरी चाकू से मिट्टी खोदी | हाथों से मिट्टी हटाई और संदूकची को बाहर निकाल लिया | रामपुरी चाकू को उसने जेब में रखा, इधर-उधर देखा, दीवार फांदी और संदूकची लेकर अपने घर को और चल दिया |
बहुत दिनों बाद आज उसके हाथ माल लगा था | उसे घर पहुंचने की जल्दी थी | घर पहुंचकर चोर ने संदूकची खोली | आश्चर्य! उसमें न रुपए थे, न गहने | उसमें एक पत्र था | शायद इस पत्र में किसी खजाने के बारे में लिखा हो | चोर को थोड़ा-बहुत पढना आता था | उसने पत्र पढ़ना शुरु किया –
‘पूज्यनीय भगवान,
प्रणाम!
मैं चोर हूँ | मैंने पिजाती की जेब से दस रुपए चुराए हैं | पिताजी बहुत अच्छे हैं | उन्हें मेरी चोरी का पता चल गया है, पर उन्होंने मुझे न पीटा, न डांटा | मेरे बारे में उन्होंने मेरी माताजी से कहा- ‘जो बच्चा बचपन में पैसे चुराता है, वह बड़ा होकर चोर बनता है | उसे कोई प्यार नहीं करता | वह कभी बड़ा आदमी नहीं बन सकता | जो बच्चा बड़ा आदमी बनना चाहता है, वह कभी चोरी नहीं करता | वह सच्चाई के रास्ते पर चलता है |’
हे भगवान्! मैं किस मुंह से उनसे क्षमा मांगू | आप मुझे क्षमा करवा दीजिए | मेरी बात पिताजी तक पहुंचा दीजिए | मैं अब कभी चोरी नहीं करूंगा | मैं सच्चाई के रास्ते पर चलूँगा | मैं पिताजी को महान बनकर दिखाऊंगा |
धन्यवाद भगवान्
तुम्हारा नन्हा भक्त
राजू’
पत्र पढ़कर चोर बहुत लज्जित हुआ | वह बालक राजू के इस तरह के विचारों से बहुत प्रभावित हुआ | फिर उसने सदैव सदमार्ग पर चलने का निश्चय किया |