पिछले एक दशक में देश की महिलाओं ने काफी तरक्की की है। देश में वर्किंग महिलाओं की संख्या बढ़ी है, वहीं हाउसवाइव्स के रहन-सहन में भी पहले की तुलना में सुधार आया है, लेकिन एक कड़वा सच यह है कि आज भी महिलाएं अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए संघर्ष करती नजर आती हैं। कस्तूरबा गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर आज हम बात करेंगे उनके प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में, जिन्होंने स्कूली पढ़ाई नहीं करने के बावजूद अपनी हिम्मत और हौसले से ना सिर्फ महात्मा गांधी को राह दिखाई, बल्कि देश की महिलाओं को एकजुट कर स्त्री शक्ति को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए जानें उनकी शख्सीयत से जुड़े कुछ दिलचस्प पहलुओं के बारे में…..
महात्मा गांधी जब बैरिस्टरी की पढ़ाई के बाद विलायत से वापस लौटे थे, तो अंग्रेजों का रहन सहन और उनकी संस्कृति महात्मा गांधी पर बहुत हद तक हावी हो चुकी थी। वह कस्तूरबा गांधी को भी अंग्रेजी पढ़ाना चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने उनके लिए स्लेट और किताबें भी मंगवा ली थीं। लेकिन कस्तूरबा के लिए यह परिवर्तन स्वीकार करना इतना आसान नहीं था। उस समय में महात्मा गांधी का रवैया कुछ ऐसा था कि वह कस्तूरबा को अपनी हर बात मनवाने के लिए हठ करते थे। कस्तूरबा उनकी अपेक्षा अनुसार जब अंग्रेजी नहीं सीख पाईं तो एक दिन उन्होंने झल्लाकर कह दिया, ‘तू तो एकदम बुद्धिहीन है। एक बात कहे देता हूं, तुझ जैसी अनपढ़ स्त्री से मेरा मेल नहीं बैठ सकता।’ पति के लिए पूरी तरह से समर्पित कस्तूरबा को यह बात सुनकर काफी ठेस लगी। स्वाभिमानी कस्तूरबा ने गांधी जी को जवाब दे दिया, ‘अगर मेल नहीं बैठता है तो कोई बात नहीं। आप संभालिए अपना घर-बार।’ कस्तूरबा सचमुच अपने मायके चली गईं। कस्तूरबा के जाने के बाद महात्मा गांधी की गृहस्थी पूरी तरह से ठप्प पड़ गई। तब उन्हें कस्तूरबा के अपने जीवन में होने की अहमियत का अहसास हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी को एक भावुक संदेश भेजा कि घर की मालकिन के बिना गृहस्थी पूरी तरह बेहाल हो गई है। इस पर कस्तूरबा का मन भी पिघल गया। कस्तूरबा के मायके चले जाने की घटना से गांधी जी को दांपत्य जीवन से जुड़ी एक बड़ी सीख मिली और वह यह कि पत्नी भी परस्पर सम्मान की हकदार है।
धैर्यवान और सहृदय थीं कस्तूरबा
आश्रम जीवन में ढल जाने के बाद महात्मा गांधी कस्तूरबा को ‘बा’ कहकर पुकारने लगे थे। इस समय तक बा ने भी गांधी जी के बहुत से सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया था। इसी दौरान गांधी जी ने आश्रम में हरिजन परिवार को रखा, जिसे लेकर आश्रम में काफी उथल-पुथल मच गई। गांधी जी ने आश्रम में रहने वालों को खुद साफ-सफाई रखने के लिए कहा, जिसे सुनकर उनकी सगी बहन रलियातबेन तक आश्रम छोड़कर चली गईं। इसी बीच कस्तूरबा से एक आश्रम के नियमों से जुड़ी एक सैद्धांतिक चूक हुई और गांधी जी उनकी कमी सार्वजनिक तौर पर गिनाने में पीछे नहीं रहे। गांधी जी ने शाम की प्रार्थना में कहा, ‘बा ने आश्रम के लिए मिली बारह रुपये की राशि को आश्रम में जमा नहीं किया, बल्कि स्वयं ही खर्च कर दिया और इस तरह उन्होंने अस्तेय व्रत तोड़ा है। इस दौरान प्रार्थना में मौजूद ज्यादातर लोगों को कस्तूरबा के लिए इस तरह के शब्द अच्छे नहीं लगे, लेकिन कस्तूरबा पूरी तरह शांत रहीं। एक महिला को कस्तूरबा से बहुत ज्यादा सहानुभूति हुई और उन्होंने उनसे एक चिट्ठी में कहा, ‘बापू का आपके बारे में इस तरह बोलना सही नहीं है। वे आप पर साधारण चीजों के लिए भी कितनी सख्ती करते हैं।’ बा ने इसके जवाब में जो लिखा, उसे पढ़कर हर महिला प्रेरित हो सकती है। बार ने लिखा, ‘मुझसे भूल हो गई और उन्होंने इस बारे में बता दिया। इसमें कोई विशेष बात नहीं हुई। हमारी गृहस्थी में सब चीजें सार्वजनिक हैं। जो होता है, सबके सामने होता है। क्या हर घर में ऐसी चीजें देखने को नहीं मिलतीं?’
गांधी जी को सबसे प्रिय थीं कस्तूरबा
कस्तूरबा को श्रद्धांजलि देते हुए एक बार गांधीजी ने उनके लिए कहा था- ‘अगर बा ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो मैं इतना ऊंचा उठ ही नहीं सकता था। यह बा ही थीं, जो हर क्षण और हर स्थिति में मेरे साथ थीं। अगर वह नहीं होतीं तो भगवान जाने मेरा क्या होता? मेरी पत्नी मेरे अंतर को जिस प्रकार झकझोर देती थी, उस प्रकार दुनिया की कोई स्त्री उसे आंदोलित नहीं कर सकती। वह मेरे लिए अनमोल रत्न थी।’