कस्य दोष: कुले नास्ति व्याधिना को न पीड़ित: |
व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम ||
यहाँ आचार्य चाणक्य का कथन है कि दोष कहाँ नहीं है ? इसी आशय से उनका कहना है कि किसके कुल में दोष नहीं होता ? रोग किसी दु:खी नहीं करते ? दु:ख किसे नहीं मिलता और निरंतर सुखी कौन रहता है अर्थात् कुछ कमी तो सब जगह है और यह एक कड़वी सच्चाई है | दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो कभी बीमार न पड़ा हो और जिसे कभी कोई दु:ख न हुआ हो या जो सदा सुखी ही रहा हो | तो फिर संकोच या दुःख किस बात का ?
इसलिए व्यक्ति को अपनी कमियों को लेकर अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए बल्कि कमियों के रहते भी आचरण पर ध्यान देते हुए उसे अन्य मानवीय गुणों से सम्पन्न करना चाहिए ताकि व्यक्तित्व को पूर्णता प्राप्त हो सके | क्योंकि निरंतर सुख तो संसार में किसी को भी प्राप्त नहीं होता | आज दुःख है तो कल सुख भी होगा | आज सुख है तो कल दुःख भी होगा | यही जग की रीति है |