दोपहर का समय था। लगभग एक बजा होगा। हम सब एक खाना खाकर आराम कर रहे थे। लेटे-लेटे मां को नींद आ गई गर्मी के कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी। पंखा भी गर्म हवा फेंक रहा था। दीदी कहानियों की पुस्तक पढ़ रही थी। रोशनदान हवा से कभी खुल रहा था और कभी बंद हो रहा नो था। मेरी नजर एक चिड़िया पर पड़ी। वह रोशनदान में से झांक रही थी। उसकी चोंच में एक तिनका था।
दीदी बोली “अरे हां! हम पंखा बंद कर देते हैं।”
मैंने कहा- “मगर मांजी उठ जाएंगी।”
दीदी सोचती हुई बोली- “फिर क्या करें?”
मैंने दीदी से कहा “दीदी, चिड़िया हमारी बात नहीं समझ रही है।”
दीदी ने चिड़िया को घोंसले तक पहुंचाने का दूसरा तरीका ढूंढ़ा। हम दोनों रोशनदान की ओर से हट गए। दूसरी ओर से हाथ में कपड़ा लेकर उसे उड़ाने लगे। बार-बार चिड़िया एक जगह से उड़ती, दूसरी जगह जा बैठती । अब उसने अपनी चोंच से तिनका भी छोड़ दिया था। हमने समझ लिया कि अब वह उस घोंसले पर बैठ जाएगी। हमने चैन की सांस ली, परंतु ऐसा न हुआ। वह फिर उड़ गई। हमने उसे इशारों से बार-बार समझाने की कोशिश की, पर वह हमारी बात नहीं समझ पाई। दीदी मन-ही-मन कुछ सोचने लगी। थोड़ी देर बाद दीदी ने मुझसे कहा- “शायद चिड़िया दूसरों के द्वारा बनाए गए घोंसले में नहीं रहती। वह अपना घोंसला अपने आप बनाती है।”
दीदी की बात मुझे माननी पड़ी, पर हमें उसके लिए कुछ करना जरूर चाहिए। हम दोनों सोचने लगे। मैंने दीदी से कहा “अच्छा दीदी, हम एक काम कर सकते है | दीदी ने मुझे इशारे से समझाया कि मैं धीरे बोलूं। मांजी उठ जाएंगी।
मैंने धीरे से दीदी के कान में कहा- “हम इन तिनकों को आंगन में बिखेर देते हैं। चिड़िया एक-एक करके इन्हें उठा लाएगी और अपना घोंसला अपने आप बना लेगी।”
दीदी को मेरी बात पसंद आई। हमने धीरे-से दरवाजा खोला। बाहर गर्म हवाएं चल रही थीं। दीदी ने तिनकों को आंगन में इधर-उधर बिखेर दिया। अब हम निश्चिंत थे। तिनके बिखेरकर हम अंदर आ गए। पर यह क्या! चिड़िया कहां गई? हमने चिड़िया को इधर-उधर ढूंढ़ा।
अचानक मेरी नजर चिड़िया पर पड़ी।
मैने चिल्लाया- “दीदी।”
मेरी चीख सुनकर मांजी उठ गईं। मांजी ने पूछा- “क्या हुआ?”
मैंने आंखों पर से हाथ हटाया और इशारा किया ‘चिड़िया’। दीदी और मां चिड़िया के पास गईं। मैं भी चिड़िया के पास आया। चिड़िया बेचारी मर चुकी थी। मैंने पंखे की ओर देखा। पंखा अब भी उसी तरह चल रहा था। मैं दीदी की ओर मुड़ा। दीदी की आंखों में आंसू देखकर मैं भी रो पड़ा।