गोविंद बल्लभ पंत को देश के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है। जिन्होंने आधुनिक भारत के मौजूदा स्वरूप को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी |
जब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो पंत को भी गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। मार्च 1945 तक वह कांग्रेस कमेटी के अन्य सदस्यों के साथ अहमदनगर किले में तीन वर्ष तक कैद रहे। इतिहासकार डॉ. अजय रावत के मुताबिक उनकी किताब ‘फॉरेस्ट प्रॉब्लम इन कुमाऊं’ से अंग्रेज इतने भयभीत हो गए थे कि उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस किताब को 1980 में फिर प्रकाशित किया गया।
तीन बार बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे थे। 1937 से 1939 तक उन्होंने ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था। उत्तर प्रदेश जिसे संयुक्त प्रांत कहा जाता था वहां 1946 के चुनावों में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया और उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया। वे 1946 से 1947 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। देश के आजाद होने के बाद पंत 1954 तक फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
फिर 1955 में पंत केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए लखनऊ से नई दिल्ली आ गए। वे 1955 से 1961 तक केंद्रीय गृहमंत्री के पद पर कार्यरत थे। एक स्वतंत्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के रूप में अपनी निस्वार्थ सेवा के लिए उन्हें 1957 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
खुद दिया नाश्ते का बिल
सीएम रहते एक बार पंत जी ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय-नाश्ते का इंतजाम किया गया था। जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे। पंत ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे इस बिल को पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को खुद देना चाहिए। हां, चाय का बिल जरूर पास हो सकता है।
तब अधिकारियों ने उनसे कहा था कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। पर बाद में पंत ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले कि नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा। नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता। उस खजाने पर जनता और देश का हक है, मंत्रियों का नहीं। यह सुनकर सभी अधिकारी चुप हो गए। गोविंद बल्लभ पंत का 7 मार्च 1961 को 74 साल की उम्र में निधन हो गया।