दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति करके वर्धमान नगर का सबसे बड़ा सेठ कहलाने लगा। नगर के व्यापारियों में उसकी तूती बोलने लगी। निःसंदेह उसने यह सम्मान अपने व्यापारिक सलाहकार दन्तिल के परिश्रम से प्राप्त किया था। दन्तिल की सलाह से वह मिट्टी में भी हाथ डालता तो वहां से भी सोना निकलता। सेठ के साथ-साथ दन्तिल की भी नगर में अच्छी ख्याति फैल गई थी।
सेठ, गोरम्भ की भविष्यवाणी से चौंक पड़ा और उसने उत्सुकतावश पूछा- “क्या कहते हो गोरम्भ?”
गोरम्भ ने अपनी दृष्टि नीचे कर कहा – “दन्तिल साहब ने नदी पार जमीन खरीदी है। वहां वे बहुत बड़ी फैक्ट्री लगा रहे है और आपके सैकड़ों कारीगर उनके साथ जाने को तैयार हो गए हैं।”
‘जो बात स्वार्थ में सनी होती है, उस पर बिना प्रमाण ही विश्वास हो जाता है।
गोरम्भ की बात सुनकर सेठ के पैरों तले से जमीन खिसक गई।
गोरम्भ तो चला गया पर सेठ की नींद उड़ गई। पूरी रात उसकी साख और सम्पन्नता की आशंका उसे घेरे रही। सपने में भी सेठ ने अपनी जगह दन्तिल को बैठे पाया। भोर होते-होते सेठ को बुखार ने दबोच लिया और लगभग एक सप्ताह वह बिस्तर पर पड़ा रहा। सारा काम दन्तिल देखता और शाम को सेठ को ब्यौरा दे जाता। ये ब्यौरा जो कुछ गोरम्भ देता उससे भिन्न होता ।
सेठ ने अनिश्चितता प्रकट की- “कहीं पुलिस तक…।” सेठ वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि अंगरक्षक ने नो आश्वासन देते हुए कहा – “आपके ऊपर आंच नहीं आने दूंगा ।”
स्वार्थमय विचार सांसारिक जीवन को अत्यधिक सुख पहुंचाते हैं। सेठ इस निंदनीय कृत्य के लिए सहमत हो गया।
उसी रात दफ्तर से घर पहुंचने से पहले चार व्यक्तियों ने दन्तिल को अनाज के खाली बोरे में बंद कर दिया। बोरे को बैलगाड़ी में डाल कर घने अंधकार में शहर से दूर ले गए। शहर से कुछ किलोमीटर दूर खण्डहरों में एक पुराना कुआं था। अपना निशान न छोड़ने का उन्होंने अच्छा उपाय सोचा। उसे इसी कुएं में डालकर तुरंत लौट गए। कुएं के बारे में वे नहीं सोच पाए कि उसमें कितना पानी है। कुएं में कम पानी था। जब उन्होंने उसे कुएं में फेंका तो बोरी का मुंह खुल गया और पानी के स्पर्श से थोड़ी देर में दन्तिल की बेहोशी जाती रही,
किंतु समस्या थी कि इतने गहरे कुएं से बाहर कैसे निकला जाए। वह अपनी रक्षा के लिए चिल्लाने लगा।
उसी रात सेठ के घर में चोरी हुई। चोरी का माल लेकर भागते हुए चोरों का पहला पड़ाव यही खण्डहर था। चोरों ने दन्तिल की आवाज सुनी। उन्होंने दन्तिल को बाहर निकाला। चोरों ने दन्तिल को पहचान लिया। चोर बनने से पहले ये लोग सेठ की फैक्ट्री में ही काम करते थे। उन्हें भी गोरम्भ ने चोरी का आरोप लगाकर निकलवा दिया था। कारीगरों के साथ दन्तिल का व्यवहार बहुत अच्छा था। यही कारण था दिनों से कि इतने वह सभी अन्य फैक्ट्रियों से अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन का दिन निकाल रहा था। अन्य अधिकारी उसकी लगन, मेहनत और ख्याति से ईर्ष्या करने लगे थे।
दन्तिल की दुख भरी कथा सुनकर चोर सब कुछ समझ गए। गोरम्भ का ही हाथ इसके पीछे रहा होगा। दन्तिल के प्रति उनकी सहानुभूति का सोता फूट पड़ा। चोरों की दुश्मनी गोरम्भ के साथ कुछ विशेष ही थी। उन्होंने एक योजना बनाई। चोरी किया सेठ का सामान गोरम्भ के घर में रख आए और उसकी चप्पलें सेठ के मकान की उस दीवार से नीचे डाल आए जहां से चढ़कर उन्होंने चोरी की थी।