राष्ट्रवाद इन दिनों विमर्श के केन्द्र पर है। भारत के संदर्भ में और वैश्विक संदर्भ में भी। राजनीतिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पक्ष व विपक्ष पर खूब चर्चाएं हुईं, हो रही हैं, तो भला पत्रकारिता इससे क्यों अछूती रहे। उसमें भी राष्ट्रवाद के तत्व तलाशे जा रहे हैं।
राष्ट्रबोध भारतीय पत्रकारिता के मूल में ही रहा। उसका उद्भव और विकास ही राष्ट्र व समाज के कुशल क्षेम के लिए हुआ..।
लेखक – जयराम शुक्ल