मां नर्मदा के पवित्र जल और संस्कारधानी की पवित्र मिट्टी से धर्म, अध्यात्म, साहित्य, दर्शन सहित विविध विधाओं केम दुर्लभ रंग-बिरंगे खूबसूरत और सुगंधित अमर पुष्प विकसित हुए हैं। कभी महर्षि गौतम के रूप में कभी महर्षि जाबालि के रूप में, कभी भृगु के रूप में कभी महाकवि राज शेखर के रूप में, कभी महर्षि महेश योगी के रुप में तो कभी आचार्य रजनीश के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें राजशेखर पारिजात पुष्प हैं।
राजशेखर अपने प्रारंभिक दिनों में गुर्जर प्रतिहार राजाओं के आश्रय में चले गए थे, गुर्जर नरेश महेंद्र पाल ने उन्हें कविराज की उपाधि से विभूषित किया था। कन्नौज में राजाश्रय के समय महाकवि राजशेखर ने बाल रामायण, बाल भारत और कर्पूर मंजरी सट्टक लिखे। परंतु गुर्जर प्रतिहार राष्ट्रकूट से पराजित हो गए और कन्नौज श्री विहीन हो गया, तब राजशेखर अपने पूर्व आश्रयदाता त्रिपुरी नरेश युवराज देव की सभा में फिर आ गए और कई वर्षों तक उन्होंने साहित्य सृजन किया। त्रिपुरी (जबलपुर)में ही महाकवि राजशेखर ने सन् 935 में विद्धशाल भंजिका और काव्य मीमांसा पूर्ण की। पू अनेक कलचुरि राजाओं की सभाओं को गौरवान्वित किया और नरेश युवराज देव द्वितीय के समय तक सक्रिय रहे महाकवि राजशेखर न केवल महान कवि और नाटककार थे वरन् एक महान इतिहासविद् थे। संस्कृत और प्राकृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे। तत्कालीन देश, काल, और परिस्थितियों परिस्थितियों के अनुरूप राजशेखर ने अपनी लेखनी को बुलंद किया है।
विद्धशाल भंजिका का प्रणयन जबलपुर में हुआ था। संस्कृत कवि राजशेखर द्वारा रचित विद्धशाल भंजिका चार अंकों का नाटक है जिसमें राजकुमार विद्याधर मल्ल तथा मृगांकावली एवं कुवलयमाला नामक राजकुमारियों की प्रेम कथा वर्णित है। इस नाटक का मंचन सर्वप्रथम युवराजदेव के समय किया गया था। त्रिपुरी की दृष्टि से महाकवि राजशेखर की सर्वश्रेष्ठ रचना काव्यमीमांसा है। काव्यमीमांसा प्रीति, रस, और अलंकार आदि किसी एक विषय को लेकर नहीं लिखी गई है, किंतु अपनी नवीन प्रतिभा जन्य शैली द्वारा काव्य एवं कवि के समग्र प्रयोजनीय विषयों का एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी संकलन है। इस ग्रंथ का प्रथम अधिकरण ही उपलब्ध है जिसमें अठारह अध्याय हैं, इसका नाम ‘कवि रहस्य’ है जो वस्तुतः कवि के रहस्य को प्रकट करता है। इसमें कवियों का श्रेणी निर्धारण, कवियों के बैठने का क्रम, वेशभूषा आदि का वर्णन है, अतः इसमें प्रधान विषय कवि शिक्षा का ही है। एक रोचक कथा को आधार बनाकर प्रवृत्ति, वृत्ति और रीति के संबंध में राजशेखर का कथन है कि काव्य पुरुष के अन्वेषण के समय उनकी प्रिया साहित्य वधू देश के विभिन्न अंचलों में विलक्षण वेशभूषा विचित्र विलास और नवीन नवीन वचन विन्यास को धारण करती जाती थी। इस प्रकार प्रवृति अर्थात् वेशविन्यासक्रम, वृति अर्थात विलासविन्यासक्रम और रीति अर्थात् वचनविन्यासक्रम के आधार को लेकर भारत के विभिन्न अंचलों की विशेषकर बुंदेलखंड की साहित्यिक संपदा एवं काव्यगत सौंदर्य की समीक्षा के विवेक पर राजशेखर ने विभिन्न प्रदेशों के नाम से विभिन्न काव्य शैलियों का तथ्यमूलक विषयों का नामकरण किया है। राजशेखर की दो रचनाएं क्रमशः भुवनकोश और हरिविलास अप्राप्त हैं।
गौरतलब है कि कलचुरि काल में उनकी बाल रामायण का नाटकीय मंचन प्रारंभ हुआ, आज विविध कालों विकसित रामलीला संस्कारधानी की धरोहर है। उनकी याद में प्रतिवर्ष रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय और उस से संबद्ध श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में कालिदास संस्कृत अकादमी म. प्र. संस्कृति परिषद् उज्जैन के सौजन्य से अखिल भारतीय राजशेखर समारोह आयोजित किया जाता है।
लेखक – डॉ. आनंद सिंह राणा