औरंगजेब द्वारा कठोर यातनाएँ, जुबान काटी, चीरा लगाकर नमक भरा
पिछले दो हजार वर्षों में संसार का स्वरूप बदल गया है । बदलाव केवल शासन करने के तरीके या राजनैतिक सीमाओं में ही नहीं हुआ अपितु परंपरा, संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक स्वरूप में भी हुआ है । किंतु भारत इसमें अपवाद है । असंख्य आघात सहने के बाद भी यदि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ दिख रहीं हैं तो इसके पीछे ऐसे बलिदानी हैं जिन्होंने कठोरतम प्रताड़ना सहकर भी अपने स्वत्व की रक्षा की है । झुकना या रंग बदलना स्वीकार नहीं किया । ऐसे ही बलिदानी हैं सम्भाजी महाराज जिन्हें धर्म बदलने के लिये 38 दिनों तक कठोरतम यातनाएँ दीं गईं जिव्हा काटी गई, शरीर में चीरे लगाकर नमक भरा गया पर वे अपने स्वत्व पर अडिग रहे ।
छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को हुआ था । तब कुछ समय तक शिवाजीे महाराज के अनुज राजाराम को हिन्दु पदपादशाही पर सत्तारूढ़ कर दिया था । और अंत में 16 जनवरी 1681 को सम्भाजी महाराज का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ । इसी वर्ष औरंगजेब का एक विद्रोही पुत्र अकबर ने दक्षिण भारत भाग आया था । और संभाजी महाराज से शरण की याचना की । छात्रपति श्री सम्भाजी महाराज जितने वीर और पराक्रमी थे उतने भावुक भी उन्होंने शहजादे अकबर को अपने यहाँ शरण और सुरक्षा प्रदान की । इससे औरंगजेब और बौखलाया । यह वही शहजादा अकबर था जो संभाजी महाराज के बलिदान के बाद अपने परिवार के साथ राजस्थान चला गया था ।और वहाँ वीर दुर्गादास राठौर के संरक्षण में रहा । सम्भाजी महाराज ने चारों ओर मोर्चा लिया था । एक ओर मुग़लों से तो दूसरी ओर पोर्तगीज एवं अंग्रेज़ों से भी । इसके साथ अन्य आंतरिक शत्रु थे सो अलग । इतने संघर्ष के बीच भी उन्होंने मराठा साम्राज्य को विस्तार दिया ।
1689 पुर्तगालियों को पराजित करने के बाद वे से संगमेश्वर में वे व्यवस्था बनाने लगे । संभाजी महाराज ने तीन दिशाओं में एक साथ युद्ध किये । मुगलों से, निजाम से और पुर्तगालियों से भी । पर वे कोई युद्ध न हारे । और यदि हारे तो एक विश्वासघात के कारण हारे । यह 31 जनवरी 1689 का दिन था । वे संगमेश्वर थे और अपना राजकीय कार्य पूरा करके रायगढ़ जाने वाले थे । जब वे संगमेश्वर में थे तभी उन्हें मार्ग में फंसाने की योजना बन गई थी । जब उन्होंने अपनी यात्राकी तिथि निर्धारित तभी कुछ ग्रामवासी उनसे आकर मिले । ये लोग गणोजी शिर्के के साथ आये थे । गणोजी को वे अपना विश्वासपात्र मानते थे । वह किसी रिश्ते में उनकी पत्नि का भाई लगता था । गणोजी ने बताया कि क्षेत्रवासी उनका सम्मान करना चाहते हैं । यह आग्रह कुछ इस प्रकार किया गया कि सम्भा जी टाल न सके । उन्होंने मार्ग में रुकना स्वीकर कर लिया । इसके लिये सम्भाजी महाराज अपने केवल 200 सैनिक साथ रखे और सेना को रायगढ रवाना कर दिया । उन्हे बताया गया था कि मुगल सेना रायगढ की ओर आ रही है इसलिए संभाजी महाराज ने सेना रवाना की और केवल दो सौ सैनिकों के साथ उस क्षेत्र की ओर चल दिये । यह आमंत्रण की योजना एक षडयंत्र था । मुगल सैन्य सरदार मकरब खान ने गणोजी शिर्के को लालच दिया था कि यदि वह संभाजी को पकड़वाने में सहयोग करेगा तो दक्षिण का आधा राज्य दे दिया जायेगा। गणोंजी लालच में आ गया और वह षड्यंत्र में शामिल हो गया । आमंत्रण के नाम पर षड्यंत्र की यह योजना उसी ने बनाई थी । जब संभाजी महाराज ने सहमति दे दी तो उसने यह सूचना मुगल सरदार को भेज दी और रास्ता भी समझा दिया । मुग़ल सरदार मुकरब खान के साथ गुप्त रास्ते से 5,000 के फ़ौज के साथ वहां जा पहुंचा । यह वह रास्ता था जो केवल मराठों को पता था । इसलिए सम्भाजी महाराज को कभी संदेह भी न हुआ था कि शत्रु इस और से आ भी सकता है । लेकिन शिर्के ने मुगल सेना को पूरे मार्ग का विवरण भेज दिया था । मार्ग सकरा था । उससे किसी समूह को एक साथ नहीँ निकला जा सकता था । एक एक करके ही निकलना संभव था । संभाजी महाराज अपने निजी सुरक्षा सैनिकों के साथ इसी प्रकार चलने लगे । लेकिन शत्रु की जमावट बहुत तगड़ी थी पाँच हजार सैनिक तैनात थे । इतनी बड़ी फौज के सामने 200 सैनिकों का प्रतिकार नहीं हो पाया चूकि सैनिक एक एक करके निकल रहे थे । सब पकड़े गये या बलिदान हुये । औरंगजेब ने संभाजी महाराज को जीवित पकड़ने का आदेश दिया था इसलिये सम्भाजी महाराज अपने मित्र कवि कलश के साथ 1 फरबरी 1689 को बंदी बना लिये गये । इन्हे जंजीर से बाँधकर तुल्लापुर किले में लाया गया । औरंगजेब ने समर्पण करने पर पूरा राज्य लौटाने का लालच दिया । समर्पण की शर्त इस्लाम कुबूल करना थी । सम्भाजी महाराज ने इंकार कर दिया । तब औरंगजेब ने यातनाएँ देकर समर्पण को राजी करने के आदेश दिये । और तब क्रूरताओं का सिलसिला चला । औरंगजेब के राज में मतान्तरण करने केलिये क्रूरतम यातनाएँ देना नया नहीं था । कभी किसी को परिवार सहित कोल्हू में पीसा गया, कभी किसी को आरे से चीरा गया, कभी गर्म कढ़ाही में डाला गया । कभी किसी को जिन्दा घोड़े से बाँधकर घसीटा गया । ऐसी ही क्रूरतम यातनाओं का क्रम सम्भाजी के साथ चला । यह सब कोई 38 दिन चला । उन्हे उल्टा लटका कर पिटाई की गई, आँखे निकालीं गई, चीरा लगाकर नमक लगाया गया, जिव्हा काटी गई। और अंत में एक एक अंग काटकर तुलापुर नदी में फेक दिया गया। इस प्रकार 11 मार्च 1689 को उनका बलिदान हुआ । एक फरवरी से 11 मार्च तक क्रूरता पूर्ण यातनाओं का यह क्रम चला । लेकिन सम्भाजी महाराज न झुके और मुगल सैनिक यातनाएं देकर थक गए तब शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिये गये ।
कोटिशः नमन ऐसे बलिदानी वीर सम्भाजी महाराज को
लेखक:- रमेश शर्मा