1857 के भीषण संग्राम में ब्रिटिश सेनानी सर हुम्रोज ने जब देखा कि विजयश्री उसी को मिलने वाली है, तो उसने तत्कालीन बादशाह बहादुरशाह ‘जफर’ को उर्दू में निम्न पन्क्तियाँ लिख दीं | सर हुम्रोज ने भारत आने पर हिंदी और उर्दू का गहरा अध्ययन किया था और वह उनमें काव्य करने में निपूर्ण भी हो गया था, अत: उसे ये पन्क्तियाँ लिखने में कोई कठिनाई महसूस न हुई –
-ये ‘जफर’, हिंदुस्तानी सैनिको की तलवारें ठंडी पड़ गयी हैं, उनमें अब बिल्कुल साहस न रहा | उन्हें तो अब अपने प्राणों की भिक्षा माँगनी चाहिए |
बादशाह स्वयं ‘जफर’ उपनाम से उर्दू में शेरो-शायरी किया करता था | उस स्वाभिमानी ने जवाब में निम्न पन्क्तियाँ भेंज दीं –