जागो ग्राहक जागो
भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत मुम्बई में वर्ष 1966 में हुई थी। तत्पश्चात् पुणे में वर्ष 1974 में ग्राहक पंचायत की स्थापना के बाद कई राज्यों में उपभोक्ता कल्याण के लिए संस्थाओं का गठन किया गया। इस प्रकार उपभोक्ता हितों के संरक्षण की दिशा में यह आन्दोलन आगे बढ़ता गया। वैसे बाजार में उपभोक्ताओं का शोषण होना कोई नई बात नहीं है बल्कि उपभोक्ताओं के शोषण की जड़ें आज बहुत गहरी हो चुकी हैं। उपभोक्ताओं को इस शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए कई कानून भी बनाए गए। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद से उपभोक्ताओं को शीघ्र, त्वरित एवं कम खर्च पर न्याय दिलाने का मार्ग प्रशस्त हुआ और उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की सेवाएं प्रदान करने वाली कम्पनियां व प्रतिष्ठान अपनी सेवाओं अथवा उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के प्रति सचेत हुए।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाए जाने का मूल उद्देश्य यही है कि उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए और अगर वे धोखाधड़ी, कालाबाजारी, घटतौली इत्यादि के शिकार होते हैं तो वे इसकी शिकायत उपभोक्ता अदालत में कर सकें। ग्राहकों के साथ आए दिन होने वाली धोखाधड़ी को रोकने और उपभोक्ता अधिकारों को ज्यादा मजबूती प्रदान करने के लिए देश में 20 जुलाई 2020 को ‘उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019’ (कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट-2019) लागू किया गया, जिसमें उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की ठगी और धोखाधड़ी से बचाने के लिए कई प्रावधान हैं।
यह कानून अब साढ़े तीन दशक पुराने ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986’ का स्थान ले चुका है। भारत में उपभोक्ता संरक्षण कानून में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक वह व्यक्ति उपभोक्ता है, जिसने किसी वस्तु या सेवा के क्रय के बदले धन का भुगतान किया है या भुगतान करने का आश्वासन दिया है और ऐसे में किसी भी प्रकार के शोषण अथवा उत्पीड़न के खिलाफ वह अपनी आवाज उठा सकता है तथा क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है। खरीदी गई किसी वस्तु, उत्पाद अथवा सेवा में कमी या उसके कारण होने वाली किसी भी प्रकार की हानि के बदले उपभोक्ताओं को मिला कानूनी संरक्षण ही उपभोक्ता अधिकार है। यदि खरीदी गई किसी वस्तु या सेवा में कोई कमी है या उससे आपको कोई नुकसान हुआ है तो आप उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
उपभोक्ताओं का शोषण होने और ऐसे मामलों में उनके द्वारा उपभोक्ता अदालत की शरण लिए जाने के बाद मिले न्याय के कुछ मामलों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि उपभोक्ता अदालतें उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए कितना बड़ा काम कर रही हैं। एक उपभोक्ता ने एक दुकान से बिजली का एक पंखा खरीदा लेकिन एक वर्ष की गारंटी होने के बावजूद थोड़े ही समय बाद पंखा खराब होने पर भी जब दुकानदार उसे ठीक कराने या बदलने में आनाकानी करने लगा तो उपभोक्ता ने उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अपने आदेश में नया पंखा देने के साथ उपभोक्ता को हर्जाना देने का भी फरमान सुनाया।
एक अन्य मामले में एक आवेदक ने सरकारी नौकरी के लिए अपना आवेदन अंतिम तिथि से पांच दिन पूर्व ही स्पीड पोस्ट द्वारा संबंधित विभाग को भेज दिया लेकिन आवेदन निर्धारित तिथि तक नहीं पहुंचने के कारण उसे परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं दिया गया। आवेदक ने डाक विभाग की लापरवाही को लेकर उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाया और उसे न्याय मिला। चूंकि स्पीड पोस्ट को डाक अधिनियम में एक आवश्यक सेवा माना गया है, इसलिए उपभोक्ता अदालत ने डाक विभाग को सेवा शर्तों में कमी का दोषी पाते हुए डाक विभाग को मुआवजे के तौर पर आवेदक को एक हजार रुपये की राशि देने का आदेश दिया।
पिछले कुछ वर्षों में ऐसे अनेक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें उपभोक्ता अदालतों से उपभोक्ताओं को पूरा न्याय मिला है लेकिन आपसे यह अपेक्षा तो होती ही है कि आप अपनी बात अथवा दावे के समर्थन में पर्याप्त सबूत तो पेश करें। उपभोक्ता अदालतों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इनमें लंबी-चौड़ी अदालती कार्रवाई में पड़े बिना ही आसानी से शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यही नहीं, उपभोक्ता अदालतों से न्याय पाने के लिए न तो किसी प्रकार के अदालती शुल्क की आवश्यकता पड़ती है और मामलों का निपटारा भी शीघ्र होता है।
लेखक:- योगेश कुमार गोयल