तीस हजार से अधिक हत्याएँ : लूट और बलात्कार की ऐसी दुर्दांत घटना दुनियाँ इतिहास में कहीं नहीं
भारत के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं हैं जिनका विवरण आज भी रोंगटे खड़ी कर देता है । दिल्ली में नादिरशाह द्वारा किया गया नरसंहार ऐसी घटना है जिसका उदाहरण दुनियाँ के इतिहास में कहीं नहीं। केवल एक दिन में तीस हजार स्त्री पुरुष और बच्चे मार डाले गये थे । लूट और बलात्कार की तो कोई सीमा नहीं। इन हमलावर सैनिकों की क्रूरता से दिल्ली का कोई घर सुरक्षित न बचा था ।
उन दिनों ईरान की सत्ता चारों ओर के हमलों से घिरी थी । एक ओर उज्बेकों से तो दूसरी ओर अफगानों से, रूसियों के भी हमले यदाकदा हुये । नादिर का दल इतना प्रभावशाली हो गया था कि ईरान के शाह ने सहायता मांगी। नादिर बेहद क्रूर किन्तु दूरदर्शी था । उसके दल ने हमलावरों से मुकाबला किया और विजय मिली । शाह ने प्रसंशा की । नादिर ने मौके का लाभ उठाया और अपना दल बढ़ा लिया । यह नादिर की दूरदर्शिता थी कि ईरान की सीमाएँ न केवल सुरक्षित हुई अपितु बिस्तार भी हुआ । वह भले शासक न बना पर ईरानी सत्ता के सूत्र और शक्तियाँ उसके हाथ आ गईं । उसे “शाह” की उपाधि और सम्मान मिला । ईरान को सुरक्षित करके नादिरशाह भारत विजय और लूट अभियान पर निकला । यह दिसम्बर 1738 के दिन थे । तब भारत की सत्ता मुगल बादशाह मुहम्मद शाह आलम के हाथ में थी । नादिर शाह ने कान्धार से प्रवेश किया । यहाँ उसे किसी बड़े प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा। सत्ता के आंतरिक संघर्ष में मुगल सत्ता बहुत कमजोर हो गई थी । फिर वह काबुल के रास्ते पंजाब में घुसा । मुगल सेना लगातार पीछे हटती गई । यहाँ नादिरशाह की सेना और बढ़ गई थी । लूट के लालच में अफगान सैनिकों की अनेक टुकड़ियाँ पाला बदलकर नादिर के साथ हो गई। कुछ कबीले भी जुड़ गये । पंजाब में लूटमार और हत्याएँ करता हुआ आगे बढ़ा। दिल्ली को बचाने के लिये मुगल सेना ने करनाल में मोर्चा बंदी कर रखी थी । करनाल से दिल्ली लगभग 114 किलोमीटर दूर है । यहाँ आते आते नादिरशाह की सेना कयी गुना हो गई थी । वह मानों आँधी की भाँति दिल्ली की ओर बढ़ रहा था । वह 24 फरवरी 1739 का दिन था । मुगल सेना मुकाबला न कर सकी और केवल तीन घंटे में मुगल सेना ने घुटने टेक दिये ।मुगल बादशाह ने समर्पण कर दिया । मुगल सेना से हथियार डाल दिये । बादशाह के साथ बंदियों से जैसा व्यवहार हुआ । नादिरशाह विजेता होकर दिल्ली आया । उसने 20 मार्च 1739 को दिल्ली में प्रवेश किया । सीधा सिंहासन पर बैठा। उसने जनानखाने और मालखाने पर कब्जा करने का आदेश दिया । सेना ने पूरे नगर में लूट और महिलाओं का अपहरण शुरु किया । नादिरशाह जहाँ भी हमला करता था वहाँ से धन के साथ बच्चों और महिलाओं को लूट कर लाता था जिन्हें गुलामों के बाजार में बेचा जाता था।
इन भयावह घटनाओं का विवरण अनेक इतिहासकारों ने लिखा है । समकालीन इतिहास रुस्तम अली की “तारीख-ए-हिंदी”, अब्दुल करीम की “बयान-ए-वकाई” और आनंद राम मुखलिस की “तजकिरा” में दर्ज किया गया था।
लेखक :- रमेश शर्मा