वाकणकर जी ने सरस्वती नदी खोज केलिये विश्व इतिहास के इस तथ्य को आधार बनाया कि संस्कृतियों के विकास और इतिहास के प्रमाणीकरण में नदियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । वाकणकर जी ने वैदिक साहित्य में वर्णित सरस्वती नदी की खोज आरंभ की । उन्होंने उपग्रह छवि से प्रमाणित किया कि सरस्वती नदी का प्रवाह हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होकर गुजरता है । आगे चलकर इस मार्ग केलिये एक परियोजना का गठन हुआ जिसके सलाहकार मंडल कै संयोजक वाकणकर जी बनाये गये । उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता को भी सरस्वती नदी से जुड़े होने के प्रमाण दिये । पुरातात्विक खोज के लिये उन्होने उन्होंने पूरे देश की यात्रा की । गंगा और नर्मदा के किनारे, विन्धय एवं सतपुड़ा पर्वत क्षणियों के मैदानों में लाखों वर्ष पुराने मानव सभ्यता के चिन्ह खोजे । पर उन्हें मालवा से बहुत लगाव था । इसलिये उन्होने नीमच, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, कायथा, शाजापुर के साथ भोपाल, रायसेन, विदिशा आदि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया और वनक्षेत्र में पदयात्राएँ कीं। उनके जीवनवृत के अध्ययन से लगता है प्रकृति से उन्हें कोई अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त थी । वे पुरातात्विक और खंडित प्रतिमाओं को इतने ध्यान से देखते थे कि लगता था उनसे बातें कर रहे हो। कयी बार तो बैठे बैठे उठकर किसी विशिष्ठ स्थान की ओर चल देते थे अथवा चलती ट्रेन में अपनी यात्रा अधूरी छोड़कर जंगल में उतर जाते थे और उन्हें वहाँ कुछ न कुछ पुरातात्विक खजाना मिल ही जाता था ।