फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ एक बार फिर चर्चाओं में है। किंतु इस बार इसके चर्चा में आने का कारण बना है चर्च । यह फिल्म इडुक्की डायोसीज़ चर्च में कक्षा 10, 11 और 12 की छात्राओं के लिए प्रदर्शित की गई थी। चर्च ने ‘लव जिहाद’ के खतरों पर प्रकाश डालते हुए “प्यार” पर एक पुस्तिका भी जारी की। केरल में कई ईसाई धर्मगुरु राज्य में ईसाई लड़कियों के इस्लाम में धर्मान्तरण का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाए। वास्तव में फिल्म को चर्च में ईसाई लड़कियों को दिखाया जाना कोई सामान्य बात नहीं है। कहना होगा कि कहीं कुछ हो रहा है, जो बहुत ही अनुचित है। चिंता में डालता है। भविष्य को लेकर भयक्रांत करता है। अपने समाज अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष और जागरुकता के लिए प्रेरित करता है।
कहना होगा कि इस्लाम से जुड़े कुछ शरारती तत्वों के दिमाग से उपजे इस विचार का आतंक कितना भयंकर है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सिर्फ हिन्दू तन, मन, जीवन ही नहीं ईसाईयत भी इससे आज अपने पर भारी संकट अनुभव कर रही है। चर्च चिंतित है कि कहीं यह इस्लामिक ‘लव जिहाद’ उनके अस्तित्व को ही न निगल ले। वहीं, हर हिन्दू घर में इस षड्यंत्र से घर के सभी सदस्यों को सावधान रहने की जरूरत पर बल दिया जा रहा है। यह बेहद गम्भीर विषय है। हिन्दू, ईसाई क्या, कई संस्कृतियों के अस्तित्व के लिए ‘लव जिहाद’ बहुत बड़ा संकट है। आज लगातार देश भर से सामने आ रहे इस तरह के मामले यह सिद्ध कर रहे हैं कि इस्लाम को माननेवाले मुसलमानों में शरारती तत्वों ने ‘लव जिहाद’ को ‘दारुल इस्लाम’ के लिए अपना हथियार बना लिया है। जबकि भारतीय संविधान इस तरह के किसी भी जिहाद को करने की अनुमति नहीं देता। भारत सभी मत, पंथ, संप्रदाय, धर्म, मजहब, रिलिजन के सह अस्तित्व को बराबर से स्वीकार्य करता है, ऐसे में इस्लाम की यह अतिवादिता एक अपराध है, जिसे तुरंत रोका जाना चाहिए । सच्चे प्रेम के लिए नाम बदलने या किसी षड्यंत्र को करने की जरूरत नहीं पड़ती।