हिन्दी साहित्य में आंचलिक खुशबू सबसे ज्यादा जिन दो साहित्यकारों की लेखनी में देखने को मिलती है, वह प्रेमचंद और रेणु हैं. प्रेमचंद ने जो लिखा रेणु उसी को नए रूप में आगे ले गईं. उनके पहले उपन्यास मैला आंचल लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आंचलिक जीवन की गंध, लय, ताल, सुर, सुंदरता और कुरूपता को प्रेमचंद के बाद किसी ने सबसे अच्छे तरीके से अपनी कहानियों और उपन्यासों में बांधने का काम किया है तो वह नाम है फणीश्वरनाथ रेणु. वही रेणु जिनकी रचना में खेत, खलिहान, चौपाल, पनघट के रास्ते, बैल, जोहड़, लकड़ी की तख्ती, पीपल का पेड़, उन पेड़ों के सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट, खेतों में उगती भूख, उस भूख के लिए जलता हुआ चुल्हा और उस चुल्हे पर सिकती हुई रोटी सबकुछ देखने को मिलता है |
निश्चित ही प्रेमचंद के लेखनी को ही उन्होंने अपने लेखनी में आगे बढ़ाया. यही कारण भी रहा कि उनको आजादी के बाद का प्रेमचंद कहा गया. उनकी प्रमुख रचनाओं में उपन्यास की बात करें तो मैला आंचल, परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड है. वहीं कहानी संग्रह में ‘एक आदिम रात्रि की महक’, ठुमरी, अग्निखोर, अच्छे आदमी आदि है. रेणु कई संस्मरण भी लिखे हैं, प्रमुख संस्मरणों में ऋणजल-धनजल, श्रुत अश्रुत पूर्वे, आत्म परिचय, वनतुलसी की गंध, समय की शिला पर आदि प्रमुख है.