जिन ‘ममता दीदी’ के राजनीतिक जीवन को स्त्री अस्मिता से जोड़ा जाता है, उसी ममता के राज में आज संदेशखाली जैसी घटनाएं वर्षों से घट रही हैं। अभी यदि चप्पे-चप्पे की जांच हो जाए तो पता नहीं बंगाल में न जाने कितने ही संदेशखाली निकलकर सामने आ जाएंगे। दूसरी ओर ‘ममता दीदी’ की ममता है कि सत्ता के लिए अपराधियों को लगातार संरक्षण देती है। एक स्त्री होकर स्त्री अत्याचार पर ‘ममता’ की चुप्पी, पुलिस को अत्याचारियों के स्थान पर पीडि़तों पर ही अत्याचार करने की छूट दे देना, आखिर क्या बता रहा है? यही कि ‘ममता बनर्जी’ वक्त के साथ इतनी बदल गईं कि उनके लिए राजनीति ही सब कुछ हो गई है। वह अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। पश्चिम बंगाल में एक नहीं कई संदेशखाली भी सामने आ जाएं तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ! उनकी सत्ता हर हाल में बनी रहना चाहिए।
यहां स्थिति कितनी भयाभह होगी, इसका तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है, क्योंकि कलकत्ता हाई कोर्ट तक को संदेशखाली मामले की जाँच अपनी निगरानी में सीबीआई से करवाने के निर्देश देने तक की आवश्यकता महसूस हुई है । टीएमसी के पूर्व नेता शाहजहाँ शेख पर संदेशखाली की महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने, जमीन कब्जाने और जबरन वसूली जैसे न जाने कितने ही आरोप हैं। हद तो यह है कि जब न्यायालय हस्तक्षेप करता है और निर्देश देता है, तब कहीं जाकर ‘ममता’ की बंगाल पुलिस शाहजहाँ शेख, शिबू हाजरा और उत्तम सरदार को गिरफ्तार कर जेल भेजती है, अन्यथा तो अपने संरक्षण में इन्हें और इन जैसे न जाने कितने ही मानवता के शत्रु गुण्डों को यह संरक्षण दे ही रही है?
कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि संदेशखाली यौन उत्पीड़न, बलात्कार और अन्य मामलों में हाई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जाँच होगी । पश्चिम बंगाल सरकार सीबीआई अधिकारियों और संदेशखाली के पीड़ितों को पर्याप्त सुविधाएँ और सुरक्षा प्रदान करेगी। हाई कोर्ट ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो को मछली पालन के लिए कृषि भूमि के अवैध रूपांतरण पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। वहीं, राज्य सरकार को आदेश दिया कि 15 दिनों के अंदर संदेशखाली के इलाके में सीसीटीवी कैमरे लग जाने चाहिए। जरूरत के हिसाब से एलईडी लगाए जाएं। इन सबका खर्च बंगाल सरकार उठाएगी । कहना होगा कि न्यायालय के आदेश के बाद अब पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार सीबीआई जाँच पर रोक नहीं लगा पाएगी। साथ ही जमीन हड़पने और ईडी पर हमले के मामले में पहले से ही सीबीआई जाँच चल रही है।
कहना होगा कि जिस ‘ममता बनर्जी’ को क्रूर सत्ता के विकल्प के रूप में पश्चिम बंगाल की जनता ने चुना था, वह ‘ममता’ पिछले कई वर्षों से सत्ता में आने के बाद अपनी राजनीतिक इच्छापूर्ति हर हाल में पूरा करने में लगी हुई हैं। पश्चिम बंगाल कल भी सुलग रहा था और आज भी सुलग रहा है। कहीं संदेशखाली हो रहा है तो कहीं आतंकी आराम से मौज मना रहे हैं। कहीं ममता सरकार के मंत्री और विधायक आम जनता को खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि तुम्हें तो यहीं रहना है, चुनाव में टीएमसी को ही वोट देना, नहीं तो आगे अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो! दूसरी ओर ‘ममता बनर्जी’ हैं जो स्वयं तुष्टिकरण की राजनीति करने में लगी हुई हैं । वह बोल रही हैं कि उनके रहते हुए पश्चिम बंगाल में सीएए, एनआरसी और यूसीसी लागू नहीं होगा, जबकि सीएए नागिरकता देने वाला कानून है, यूसीसी देश में सभी नागरिकों को समान कानून का कवच देता है जबकि एनआरसी अवैध नागरिकों की पहचान कराता है।