संत एकनाथ किसी पर भी क्रोध न करने के लिए प्रसिद्ध थे | उनकी विनम्रता एवं सहनशीलता की सभी प्रशंसा किया करते थे| एक दिन कुछ शरारती लोगों ने उन्हें क्रुद्ध करने की ठानी| उन्होंने इसके लिए एक दुष्ट व्यक्ति को चुना और उसे उन्हें क्रुद्ध कर देने के बदले में रुपयों का लालच दिया | एकनाथजी भजन कर रहे थे कि वह दुष्ट व्यक्ति आया | उसने देखा कि वे नेत्र बंद कर भजन में लीन हैं | वह उनके कन्धे पर चढ़ बैठा | संत ने आंखें खोलीं और मुस्कुराते हुए कहा, “बन्धु ! आप जैसी आत्मीयता दर्शानेवाला कोई भी अतिथि मेरे घर आज तक नहीं पधारा | मैं आपको बिना भोजन कराये जाने न दूँगा |’’ और उन्होंने सचमुच उसे प्रेमपूर्वक भोजन कराया | उस व्यक्ति को पश्चाताप हुआ ही, साथ ही उसे उकसानेवाले लोगों को भी उनकी सहनशीलता की प्रतीति हो गयी|