प्रियदर्शी सम्राट अशोक के जन्म दिन का महोत्सव था | सभी प्रांतो के शासक एकत्र हुए थे | सम्राट की ओर से घोषणा हुई –‘’ आज इस समारोह के अवसर पर सर्वश्रेष्ठ शासक को पुरस्कृत किया जायेगा |’’
घोषणा के उपरांत सब प्रांतो के शासकों ने अपना विशेष कार्य बताया | उत्तर सीमा प्रांत के प्रांतपति ने बताया –‘’ प्रादेशिक शासन की आय में मैने तीन गुणा वृद्धि कर दी हैं |’’
दक्षिण के शासक ने निवेदन किया –‘’राजकोष में प्रतिवर्ष की अपेक्षा द्विगुणा स्वर्ण मेरे प्रांत ने अर्पित किया है |”
पूर्वी प्रदेशों के अधिकारी ने सुचना दी-“पूर्वी सीमांत के उपद्रवियों को मैंने कुचल दिया है | वे राज्य के विरुद्ध सिर उठाने का साहस अब फिर कभी नहीं कर पायेंगे |”
एक अन्य प्रांताधिपति ने घोषणा की- “प्रजा से प्राप्त होने वाली आय बढ़ गयी है | सेवकों का व्यय घटा दिया गया है और आय के कुछ अन्य साधन भी ढूढ लिए गए हैं | हमारे कोषाध्यक्ष
इसका विवरण प्रस्तुत करेंगे |
अंत में मगध के प्रांतीय शासक ने उठकर विनम्रता से निवेदन किया –“ श्रीमान्! मैं क्या निवेदन करूं? मेरे प्रांत ने प्रतिवर्ष कि अपेक्षा आधे से भी कम धन राजकोष में दिया है | प्रजा का कर घटाया गया है | राज्य सेवकों को कुछ अधिक सुविधा दी गयी हैं |
प्रांत में सार्वजनिक धर्मशालाएं तथा मार्गों में उपयुक्त स्थलों पर अनेक कुएं बनवाये गए हैं | अनेक स्थानों पर रोगियों के चिकित्सा के लिए चिकित्सालय खोले गए हैं | इसके साथ ही प्रजा के बालकों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त पाठशालाएं खोली गयी हैं |
इस कारण अधिकांश धन इन जन कार्यों में ही खर्च हो गया है | अत: राजकोष में पूर्व कि अपेक्षा कम राशि जमा हो पायी है |”
जब सब अपना-अपना वक्तव्य दे चुके तो सम्राट अपने सिंहासन से उठे और घोषणा कि- “प्रजा का शोषण करके प्राप्त होने वाली स्वर्णराशि मुझे नहीं चाहिए | प्रजा के शूरों की उचित बात सुने बिना उनका दमन करने कि मैं निंदा करता हूँ | प्रजा को सुख-सुविधाएँ दी जाएँ यही मेरी इच्छा है |
“मगध के प्रांतीय शासक इस कार्य में सर्वश्रेष्ठ शासक माने जाते हैं इस वर्ष के पुरस्कार से उनको गौरान्वित किया जायेगा |
अन्य प्रांतों के शासक उनसे प्रेरणा प्राप्त करें |”
इस प्रकार समारोह संपन्न हुआ |