छत्तीसगढ़ में कमरछठ का व्रतहर साल भादो माह की षष्ठी तिथि के दिन हल षष्ठी का व्रत रखा जाता है. इसे कई राज्यों में हलछठ और ललही छठ के नाम से जाना जाता है. वहीं छत्तीसगढ़ में कमरछठ के नाम से जाना जाता है. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहारों में शामिल कमरछठ का विशेष महत्व है, महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति और संतान की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं. छत्तीसगढ़ में कमरछठ का त्यौहार आइए जानते हैं कैसे मनाया जायाता है हल षष्ठी का त्यौहार.
छत्तीसगढ़ में संतान की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए महिलाएं हलषष्ठी का व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है. उनके नाम पर इस पावन पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है. नवविवाहित स्त्रियां भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं. पूजा-अर्चना में बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाने का खासा महत्व है.
हलषष्ठी के दिन पूजा करने की विधि –
हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह स्नान कर के व्रत का संकल्प लेती हैं. इसके बाद घर या बाहर कहीं भी गोबर लीप कर छोटा सा गड्ढा खोद कर तालाब बना कर उसमें पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं, और वहां पर बैठ कर पूजा-अर्चना करती हैं. वो हलषष्ठी की कथा सुनती हैं. पूजा में चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग चढ़ाने के बाद, भुने हुए चने तथा जौ की बाली चढ़ाई जाती है.
मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन भैंस का दूध, दही, घी, पसहर चावल आदि का सेवन किया जाता है. इस दिन गाय के दूध व दही, घी का सेवन नहीं किया जाता है. साथ ही, पूजा करने के बाद माताओं के द्वारा बच्चों को तिलक लगा कर, कंधे के पास चंदन की पोतनी लगा कर आशीर्वाद देती हैं.
6 अंक का होता है महत्व –
कमरछठ में 6 अंक का काफी महत्व है, सगरी में 6-6 बार पानी डाला जाता है. साथ ही 6 खिलौने, 6 लाई के दोने और 6 चुकिया यानि मिट्टी के छोटे घड़े भी चढ़ाए जाते हैं. 6 प्रकार के छोटे कपड़े सगरी के जल में डुबोए जाते हैं और संतान की कमर पर उन्हीं कपड़ों से 6 बार थपकी दी जाती है, जिसे पोती मारना कहते हैं.