यह कथा सम्राट अशोक से भी पहले काल की है | कहते हैं कि उस काल में एक अत्यंत दयालु तथा न्यायी राजा था | उसके राज्य में शेर और बकरी एक घाट पर साथ-साथ पानी पीते थे और कोई किसी को कभी नहीं सताता था | उसके राज्य में लोगों में भोगलिप्सा नहीं थी | दूसरे की वस्तु की ओर तो कोई ताकता ही नहीं था | इससे कोई मामला का मुकदमा भी नहीं होता था | न्यायालय विरान पड़े रहते थे | नाम के लिए न्यायालय थे| न्यायाधीश भी थे, पर किसी के पास कोई काम नहीं था |
बहुत दिनों बाद दो पुरुष एक विवाद पर न्याय कराने के लिए न्यायालय में आये | दोनों ही किसान थे | न्यायाधीश ने कहा-“ अपनी बात कहो |”
वादी बोला- “न्यायमूर्ति! मैंने इनसे थोड़ी सी भूमि खरीदी थी | मैं उसमें खेती करता था | एक दिन मेरा हल जाकर किसी बर्तन से टकराया | मैंने वहां की मिट्टी हटाकर बर्तन को देखा तो उसमें हीरे, मोती और सोने की मोहरें भरी हुई थीं |
“महोदय! मैंने तो मात्र भूमि खरीदी थी, उसी का मूल्य चुकाया था | धन का खजाना तो खरीदा नहीं था | मुझे पहले कुछ भी पता नहीं था, मैंने इनसे कहा कि अपना खजाना यहां से ले जाओ, पर ये मेरी एक नहीं सुनते | मेरे खेत की जुताई रुकी हुई है |”
प्रतिवादी का बोलने का अवसर जब आया तो वह कहने लगा-“ न्यायमूर्ति! इनका कहना सत्य है | पर भला मैं स्वयं को उस धन का स्वामी किस प्रकार मान लूँ ? मैंने तो अपनी भूमि और उसके अन्दर जो कुछ था, इनको बेचकर उसका पूरा मूल्य ले लिया है | अब उसके अन्दर का सभी कुछ इनका है | ये मुझे किस कारण सता रहे हैं | कृपया न्याय कीजिएऔर इनसे मेरा पीछा छुड़ाइए |” यो कहकर दोनों फिर परस्पर वाद-विवाद में उलझ गए | वहां उपस्तिथ लोगों के समझाने- बुझाने पर भी उस धन को दोनों में से कोई भी लेने को तैयार नहीं हुआ | बेचारे न्यायाधीश क्या करते| कुछ देर तक तो वे उन लोगों के त्याग और निस्वार्थभाव की मन ही मन प्रशंसा करते रहे | अंत में न्यायाधीश को एक उपाय सूझा |
उन्होंने उन दोनों से पूछा –“तुम्हारे कोई संतान है अथवा नहीं?”
एक ने कहा-“जी हाँ , मेरा एक पुत्र है |”
दूसरा बोला- “मेरे घर में मेरी एक कन्या है |”
न्यायाधीश ने लोकाचार के अनुसार पता लगाने का यत्न किया कि उन दोनों के कुलों में परस्पर विवाहादि संबंध हो सकते हैं अथवा नहीं, तो विदित हुआ कि हो सकते हैं |
न्यायाधीश ने उन दोनों से आग्रहपूर्वक निवेदन किया-“यदि आप लोगों में से कोई भी इस धन को स्वीकार नहीं करना चाहता है तो आप अपनी-अपनी संतान का एक दूसरे की संतान से विवाह कर दीजिये और वह सारा धन उन दोनों में बाँट दीजिये |”
यही किया गया | इस प्रकार विवाद का निपटारा हो गया | यदि यह घटना वर्तमान काल में होती तो किसी भी देश का शासन बिना स्वामित्व का सारा धन सहज ही राज्य की संपत्ति घोषित कर देता |