हमीरपुर शहर में सदियों पुराने राधाकृष्ण मंदिर में जन्मोत्सव की तैयारियां आज से शुरू कर दी गई हैं। यह मंदिर ब्रिटिश शासनकाल में बना था जहां चांदी के सिंहासन में अष्टधातु की बेशकीमती राधा कृष्ण की नयनाभिराम मूर्तियां विराजमान है। इस मंदिर में अंग्रेज कलेक्टर अपने परिवार के साथ श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर पूजा अर्चना करने आते थे। यहां की आधी आबादी मंदिर में आकर श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव सामूहिक रूप से मनाती है।
हमीरपुर शहर राजा हम्मीरदेव ने बसाया था। हम्मीरदेव राजस्थान के अलवर से भागकर यहां आए थे। उन्होंने यहां सुरक्षा के लिहाज से शहर के चारों तरफ दुर्ग की रचना की थी। यह शहर यमुना और बेतवा नदियों से चारों ओर से घिरा है। हम्मीरदेव का शासन खत्म होने के बाद यहां मराठों ने राज किया था। लम्बे समय तक चले मराठाओं के शासन काल में देवी देवताओं के मंदिरों के निर्माण कराए गए थे। उस जमाने में बने मंदिर आज भी हमीरपुर नगर में मौजूद है। अंग्रेजों के शासनकाल में हमीरपुर नगर के मिश्राना मोहाल में राधा कृष्ण का भव्य मंदिर का निर्माण हुआ था। काफी बड़े क्षेत्रफल में यह मंदिर बना है। ब्रिटिश हुकूमत में शंकरलाल ओमर मध्य प्रदेश से यहां आए थे। इनके नाना ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। शंकर लाल ओमर के पुत्र अजय ओमर अब इस मंदिर के प्रमुख है जो निर्माण से लेकर मंदिर के संवारने का काम कर रहे है। इन्होंने बताया कि ब्रिटिश जमाने में इस मंदिर में अंग्रेज कलेक्टर और अफसर परिवार के साथ दर्शन करने आते थे। बताया कि मंदिर के सामने मैदान में कई दशकों तक रामलीला का मंचन भी होता था। जो अब अतीत का हिस्सा रह गई है।
चूना पत्थर से काफी बड़े क्षेत्रफल में मंदिर का कराया गया था निर्माण
शंकरलाल ओमर के पुत्र अजय ओमर ने बताया कि संवत 1890 में अंग्रेजों के शासनकाल में ही यह मंदिर बना था। बताया कि उस जमाने में बिना सीमेंट और सरिया से ही मंदिर बनाए जाते थे इसीलिए यह पूरा मंदिर सिर्फ चूना कंकरीट और पत्थर से बना था। सदियां बीतने के बाद भी ये मंदिर आज भी महफूज है। मंदिर के ऊपर चूने और पत्थर से कलश भी बना है। मंदिर परिसर में अन्य देवी देवताओं की चांदी की मूर्तियां विराजमान हैं।
ब्रिटिश जमाने में चांदी के सिंघासन में स्थापित है राधाकृष्ण की मूर्तियां
ब्रिटिश हुकूमत में हमीरपुर शहर के बीचों बीच यमुना नदी के पास राधा कृष्ण मंदिर बनाया गया था। मंदिर की देखरेख करने वाले अजय ओमर ने बताया कि मंदिर बनने के बाद चांदी का सिंघासन तैयार कराकर राधा कृष्ण की मूर्तियां रखी गई थी। ये मूर्तियां अष्टधातु की है जो बेशकीमती है। बताया कि ब्रिटिश जमाने में मूर्तियां अष्टधातु की ही निर्मित होती थी। बताया कि मूर्तियों को चांदी के सिंघासन में विराजमान करने की परम्परा थी।
मंदिर में जन्मोत्सव की रात से ही छठी तक होंगे मनमोहक कार्यक्रम
इस मंदिर में दशकों पहले रिटायर्ड नायब तहसीलदार राजनारायन पराशर पुजारी थे। उनके बाद अब मंदिर की दोनों पहर पूजाशशि बाला गोस्वामी व सुधा पराशर काफी समय से कर रही है। मंदिर के प्रमुख अजय ओमर ने बताया कि मंदिर के संवारने के लिए तमाम निर्माण कार्य कराए गए है। लाखों रुपये खर्च कर इसे चमकाया गया है। बताया कि श्रीकृष्ण के प्रगटोत्सव की रात मंगला आरती के बाद छठी तक मंदिर में कार्यक्रम होंगे।