एक बार संत उस्मान अपने शिष्य के साथ एक गली से निकल रहे थे कि किसी घर में से मालकिन ने राख से भरा बर्तन गली में उंडेल दिया, जिससे सारी राख संत उस्मान पर जा गिरी | संत ने अपना सिर और कपड़े झाड़े और शांत भाव से हाथ जोड़कर वे बुदबुदाये, “दयामय प्रभु ! तुझेधन्यवाद !” और वे आगे बढ़ गए |
तब शिष्य ने पूछा, “गुरुदेव ! आपने परमात्मा को धन्यवाद क्यों दिया | राख से आपके कपड़े खराब करने के कारण आपको मकान-मालिक से शिकायत करनी थी |”
संत ने उत्तर दिया, मैं तो आग में जलाए जाने योग्य हूँ और प्रभु ने तो राख से ही निर्वाह कर दिया, इसलिए इस कृपा के लिए उन्हें धन्यवाद क्यों न दूँ ?”