अहमदाबाद, 23 जनवरी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश जोशी उपाख्य भैयाजी जोशी ने गुरुवार को कहा कि भारत के हिंदू समाज का शक्तिशाली होना संहारक नहीं, संरक्षक है। दुर्बलों की रक्षा करने वाला है, असहाय लोगों की सहायता देने वाला है।
भैयाजी जोशी हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान की ओर से आयोजित हिंदू आध्यात्मिक सेवा मेला के उद्घाटन समारोह के एक सत्र को संबोधित कर रहे थे। 23 से 26 जनवरी तक चलने वाले इस मेले का उद्घाटन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया। अहमदाबाद के हेलमेट सर्किल के समीप गुजरात विश्वविद्यालय के मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में शाह और भैयाजी जोशी के अलावा मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, चाणक्य सीरियल के चंद्रप्रकाश द्विवेदी समेत कई गणमान्य अतिथि-संत मौजूद रहे।
भैयाजी जोशी ने कहा कि भारत के अलावा विश्व मे ऐसा कोई देश नहीं है जो सारी दुनिया को साथ लेकर चले। यह हमारी आध्यात्म की कल्पना है, वसुधैव कुटुंबकम की हमारी कल्पना है। उन्होंने कहा कि शांति का मार्ग समन्वय से होकर जाता है। सबको साथ लेकर चलने के सिद्धांत वाला ही शांति स्थापित करता है। सभी सम्प्रदाय अपनी-अपनी बातों के अनुसार चल सकते हैं, लेकिन अन्य को चलने की स्वतंत्रता नहीं देंगे, तो शांति कहां से रहेगी। विश्व पर उसी का प्रभाव रहेगा जो सभी को साथ लेकर चलेगा, वही विश्व का संचालन कर सकता है। विश्व को न तो भौतिक संपदा वाला प्रभावित कर पाएगा, ना ही पर्याप्त संख्या बल वाला उसको संचालित कर सकता है।
भैयाजी ने कहा कि भारत जैसे देश में हमारा जन्म हुआ है, यह पुण्यभूमि है, यह देवताओं की भूमि है, यह संत और संन्यासियों की भूमि है। यह त्याग और समर्पण की भूमि है। हम सभी लोग स्वतंत्र देश में जन्म लिए हुए लोग हैं। हमारी पुरानी पीढ़ी ने तो अंग्रेजों की गुलामी का अनुभव किया है। हम सभी को स्वतंत्र देश के नागरिक कहलाने का सौभाग्य मिला है। देश में एक परिवर्तन का चक्र प्रारंभ हुआ है। वर्तमान में हम विश्व के मंच पर अपने देश का सम्मान होता देख रहे हैं। इसके साक्षी होने का भाग्य हम सभी को मिला है। संतों- महापुरुषों की हम सबसे अपेक्षा है कि हम इस परिवर्तन के मूक साक्षी नहीं बनें, बल्कि इस परिवर्तन को लाने के लिए सक्रिय सहयोगी बनें।
संघ के पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि जब हम हिंदू कहते हैं तो कई बातों का समावेश होता है। हिंदू यानी धर्म है, अध्यात्म है, एक विचार है, जीवन-शैली है, जीवन मूल्य है और एक सेवा है। हिंदू केवल मंदिरों में जाने वाला या सिर्फ कर्मकांड करने वाला नहीं है, बल्कि सभी प्रकार के पहलुओं से हिंदू की पहचान बनी है। धर्म की बात करते हैं तो उसका केंद्रबिंदु मानवता है, संबंध कर्तव्य से जोड़ा जाता है, परस्पर सहयोग-सहकार से जोड़ा जाता है, सत्य और न्याय की बात करते हैं। धर्म की रक्षा के लिए चाहे जिस प्रकार के कदम उठाने के लिए हिंदू समाज हमेशा सिद्ध रहा है। जिस काम को लोगों ने अधर्म की श्रेणी में डाला है, ऐसे कार्य भी धर्म की रक्षा के लिए करने पड़ते हैं, हमारे महापुरुषों ने किए हैं। उन्होंने कहा कि इसका उदाहरण महाभारत का युद्ध है। कौरवों-पांडवों का पक्ष था। कौरवों का पक्ष अधर्म का था, पांडवों का पक्ष धर्म था।
भैयाजी जोशी ने कहा कि धर्म और अधर्म का विवेक जो सिखाता है, वह धर्म है। अहिंसा का तत्व है, लेकिन अहिंसा की रक्षा करने के लिए हिंसा का भी आधार लेना पड़ता है। अन्यथा अहिंसा का तत्व कैसे सुरक्षित रहेगा। यह हमारे महापुरुषों ने इसका मार्गदर्शन किया है। जब हम कहते हैं कि धर्म एक अध्यात्म है तो यह एक साधना है। आज भी हिमालय की पहाड़ियों में, जंगलों में, दूर-दराज में जिसे हम देख नहीं पाते हैं ऐसे अद़ृश्य महापुरुष निरंतर अपनी साधना में लगे हुए हैं। इनकी साधना भारत को सुरक्षित करने का काम करती आ रही है।