प्राचीन काल की बात है | मगध सम्राट वसुसेन के विषय में प्रसिद्ध है कि उनका ज्योतिष विद्या पर अगाध विश्वास था | उनको यह विश्वास उनके राज ज्योतिषी ने उनके मन पर जमाया था | उसका परिणाम यह हुआ कि वे बिना मुहूर्त पूछे कोई भी काम करते ही नहीं थे| जब शत्रुओं को उनकी इस प्रकार की सनक का ज्ञान हुआ तो वे ऐसी घाट लगाने लगे कि किसी ऐसे मुहूर्त में उन पर आक्रमण करें कि, जिसमें प्रतिकार का मुहूर्त न बने और उसे सहज ही परास्त किया जा सके |
किसी प्रकार इसकी सुचना प्रजा, राजदरबारी आदि को हो गयी |वे लोग चिंतित रहने लगे अब क्या होगा ?
एक बार राजा मुहूर्त निकलवा कर देशाटन के लिए निकल पड़े | राज ज्योतिषी उनके साथ ही थे | चलते हुए रास्ते में उनको एक किसान मिला | वह अपने हल बैल लेकर समीप के खेत में हल जोतने के लिए जा रहा था | राज ज्योतिषी ने उसे रोक कर कहा-“मूर्ख ! जानता नहीं कि तू जिस दिशा में जा रहा है, उस दिशा में दिशा शूल है | ऐसा करने से भयंकर हानि हो सकती है |”
किसान दिशा शूल के विषय में कुछ नहीं जानता था | उसने बड़ी नम्रता के साथ कहा- “महाराज ! मैं तो प्रतिदिन इसी दिशा में जाता हूँ | सप्ताह में एक-दो तो शूल वाले भी अवश्य होंगे | यदि आपकी बात सच होती तो मेरा कब का सर्वनाश हो गया होता |”
उसकी बात सुनकर ज्योतिषी महाराज सटसटाए | झेंप मिटाने के लिए बोले- “लगता है तेरी कोई हस्तरेखा बड़ी प्रबल है | अपना हाथ तो दिखा |” किसान ने हाथ तो बढ़ा दिया, किन्तु हथेली नीचे की ओर रखी | ज्योतिषी इससे और अधिक चिढ़ गया | बोला-“मूर्ख ! इतना भी नहीं जनता कि हस्तरेखा दिखाने के लिए हथेली ऊपर की ओर रखनी होती है |” किसान मुस्कराया और बोला-“हथेली वह फैलाए जिसे किसी से कुछ मांगना हो | जिस हाथों की कमाई से अपना गुजारा करता हूँ, उन्हें क्यों किसी के आगे फैलाऊँ |”
राजा ने इस बार पर गंभीरता से विचार किया | बहुत विचार के उपरांत उसने निश्चय किया की ज्योतिष विद्या के इस भ्रम जाल से मुक्त होने मात्र में ही समझदारी होगी | उस दिन से उसने मुहूर्त निकालने कि प्रथा को बंद कर दिया और तब से राज काज सुन्दर रीति से चलने लगा |