माघ के सबसे पवित्र और धार्मिक त्योहारों में से एक, विष्णु जी की आराधना को समर्पित षटतिला एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है | ‘षट’ शब्द का अर्थ है ‘छह’ यानि इस दिन तिल का इस्तेमाल छह तरीकों से करना शुभ माना जाता है | वहीं इस दिन तिल का दान करना काफी लाभकारी माना जाता है| मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति के साथ- साथ अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है | अन्य सभी 24 एकादशियों में से, यह एकादशी आध्यात्मिक विकास पर केंद्रित है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस एकादशी का प्रारंभ 24 जनवरी 2025 को शाम 7.25 से लेकर इस तिथि का समापन 25 जनवरी को रात 8.31 मिनट पर होगा ऐसे में 25 जनवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा |
इस एकादशी का पारण समय 26 जनवरी को सुबह 7.12 मिनट से लेकर 9.21 मिनट तक होगा |
मान्यता के अनुसार, इस व्रत में जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का उपयोग तथा दान करता है उसे उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग मिलता है | इसके अलावा जल में तिल मिलकर तर्पण करने से मृत पूर्वजों को शांति मिलती है |
भगवान विष्णु के मंत्र
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ विष्णवे नम:
ॐ हूं विष्णवे नम:
ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
षटतिला एकादशी व्रत विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें।
- घर के मंदिर में दीपक जलाकर भगवान विष्णु की पूजा की तैयारी करें।
- भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें।
- श्रीहरि को पुष्प, तुलसी दल, और तिल अर्पित करें।
- गंध, पुष्प, धूप, दीप, और तांबूल से भगवान विष्णु की षोडशोपचार ( हिन्दू धर्म में की जाने वाली एक पारंपरिक पूजा विधि ) पूजा करें।
- इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करें।
- उड़द और तिल से बनी खिचड़ी भगवान को भोग स्वरूप अर्पित करें।
- रात में तिल का उपयोग कर 108 बार ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा’ मंत्र के साथ हवन करें।
- अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
षटतिला एकादशी व्रत के नियम
- व्रत से एक दिन पहले मांसाहार और तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह त्याग दें।
- भले ही व्रत न रखा हो, इस दिन बैगन और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- भगवान विष्णु की पूजा में तिल का विशेष रूप से प्रयोग करें और तिल का भोग अर्पित करें।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन तिल का उबटन लगाना शुभ माना जाता है।
- स्नान के समय पानी में तिल डालकर स्नान अवश्य करें।
- व्रत रखने वाले व्यक्ति फलाहार में तिल से बनी चीजें और तिल मिला हुआ पानी ग्रहण करें।
- तिल का हवन और दान इस दिन अत्यंत महत्वपूर्ण और फलदायी माना जाता है।
- पूजा के समय षटतिला एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करें।
- व्रत कथा सुनने से व्रत का महत्व समझ में आता है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा
षटतिला एकादशी की व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत और पूजन करती थी। यद्यपि वह अत्यंत धर्मपारायण थी लेकिन कभी पूजन में दान नहीं करती थी। न ही उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया था। उसके कठोर व्रत और पूजन से भगवान विष्णु प्रसन्न थे, लेकिन उन्होनें सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत और पूजन से शरीर शुद्ध कर लिया है । इसलिए इसे बैकुंठलोक तो मिल ही जाएगा। परंतु इसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया है तो बैकुंठ लोक में इसके भोजन का क्या होगा ?
ऐसा सोचकर भगवान विष्णु भिखारी के वेश में ब्राह्मणी के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने भिक्षा में उन्हें एक मिट्टी का ढेला दे दिया। भगवान उसे लेकर बैकुंठ लोक में लौट आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी मृत्यु के बाद शरीर त्याग कर बैकुंठ लोक में आ गई। मिट्टी का दान करने के कारण बैकुंठ लोक में महल मिला, लेकिन उसके घर में अन्नादि कुछ नहीं था। ये सब देखकर वह भगवान विष्णु से बोली कि मैनें जीवन भर आपका व्रत और पूजन किया है लेकिन मेरे घर में कुछ भी नहीं है।
भगवान ने उसकी समस्या सुन कर कहा कि तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिल कर षटतिला एकादशी व्रत और दान का महात्म सुनों। उसका पालन करो, तुम्हारी सारी भूल गलतियां माफ होंगी और मानोकामानाएं पूरी होंगी। ब्राह्मणी में देवियों से षटतिला एकादशी का माहत्म सुना और इस बार व्रत करने के साथ तिल का दान किया। मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है।