धौलपुर, 28 जनवरी। पूर्वी राजस्थान सहित उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के साझा चंबल के बीहड़ की फिजा इन दिनों बदली-बदली सी दिखाई पड़ रही है। चंबल नदी में जहां देशी और विदेशी प्रवासी पक्षियों का डेरा है वहीं, चंबल के पानी में इन दिनों दुर्लभ जलीय जीव नन्हे घड़ियालों की मौजूदगी सुखद अहसास दे रही है। घड़ियालों के संरक्षण तथा चंबल में घड़ियाल की संख्या बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य से अब नन्हे घड़ियाल चंबल नदी में छोड़े जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के देवरी में स्थित सेंचुरी से कृत्रिम रूप से हैचिंग के बाद प्यार से पाले गए चंबल के राजकुमार कहे जाने वाले घड़ियालों को चंबल में छोड़ने की शासन और सरकार की यह कवायद आने वाले दिनों में चंबल नदी में घड़ियालों के कुनबे में बढ़ोतरी का सबब बनेगी।
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के देवरी में स्थित सेंचुरी से पहले चरण में चंबल नदी के सरसैनी घाट पर 32 घड़ियाल शावकों को राष्ट्रीय घड़ियाल पालन केंद्र द्वारा छोड़ा गया। इनमें 30 मादा एवं 2 नर नन्हे घड़ियाल शामिल हैं। चंबल में छोड़े गए इन नन्हे घड़ियाल शावकों की घड़ियाल पालन केंद्र में परवरिश की जा रही थी।
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल केंद्र देवरी मुरैना के अधीक्षक श्याम सिंह चौहान ने बताया कि 13 जनवरी को भी घड़ियाल केंद्र द्वारा चंबल नदी में 25 घड़ियाल शावकों को रिलीज किया गया था। दूसरे चरण में बुधवार को 32 घड़ियाल शावक छोड़े गए हैं। उन्होंने बताया कि 41 घड़ियाल शावकों की अभी घड़ियाल पालन केंद्र में परिवरिश की जा रही है जिन्हें आगामी फरवरी महीने में चंबल में रिलीज कर दिया जाएगा।
चंबल इलाके में घड़ियालों के संरक्षण की इस पूरी कवायद पर गौर करें तो चंबल नदी के करीब दो दर्जन घाटों पर घड़ियालों द्वारा नेस्टिंग की जाती है। इनमें धौलपुर एवं मुरैना जिले के समौना, अंडवा पुरैनी, शंकरपुरा, तिघरा, दगरा, बरसला, घेर, सरसेनी, बरई, अटेर, नखलोनी, चिलोंगा तथा बटेश्वरा घाट शामिल हैं। कई बार चंबल के तटों पर अवैध रेत उत्खनन तथा जंगली जानवरों द्वारा बड़े पैमाने पर घड़ियालों के अंडों को नष्ट कर दिया जाता है। यही वजह है कि घड़ियाल संरक्षण के लिए नेचुरल हैचिंग के साथ-साथ राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य द्वारा घड़ियालों के कुछ अंडों को संग्रहित करके देवरी लाया जाता है तथा यहां पर कृत्रिम रूप से हैचिंग कराई जाती है।
देवरी घड़ियाल केन्द्र पर हर साल करीब 200 अंडों की हेचिंग कर घड़ियाल के बच्चे निकाले जाते हैं। घड़ियाल के जन्म के समय बच्चों का वजन 125 गाम तक होता है। जन्म के साथ ही बच्चे अपने योक में 10 दिन का भोजन लेकर पैदा होते हैं। इसके बाद में 3 से 4 दिन तक घड़ियालों को जिंदा जीरो साइज फिश कर्मचारी अपने हाथों से खिलाते हैं। इसी क्रम में 4 साल तक इनकी विशेष देखरेख होती है। इसके बाद ये 120 सेंटीमीटर लंबाई हासिल कर लेते हैं। इस प्रकार 5वें साल में इन्हें चंबल में छोड़ दिया जाता है। यही वजह है कि बीते वर्षों से घड़ियाल प्रजाति के कुनबे में बढ़ोतरी हो रही है। घड़ियाल संरक्षण केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में चंबल नदी में घड़ियाल प्रजाति की संख्या 2512 तक पहुंच चुकी है।
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल केंद्र देवरी के अधीक्षक श्याम सिंह चौहान ने बताया कि चंबल के करीब 485 किलोमीटर के एरिया में घड़ियाल और मगरमच्छ क्रीड़ाएं करते हैं। वर्तमान समय में चंबल नदी में 998 मगरमच्छ हैं। इसके अलावा 6 से 8 तक डॉल्फिन का भी मूवमेंट देखा गया है। वहीं, कछुआ प्रजाति में भी वृद्धि देखी जा रही है। चंबल नदी देश की सबसे स्वच्छ एवं साफ पानी की नदी मानी जाती है। चंबल नदी का पानी एवं वातावरण जलीय जीवों के लिए काफी अनुकूल है। नतीजतन चंबल नदी में घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन एवं कछुआ की प्रजाति में बढ़ोतरी हो रही है।
चंबल नदी में घड़ियालों के कुनबे की बढ़ोतरी के अतीत पर गौर करें तो वर्ष 1970 के दशक में विश्व में कराए सर्वे में कुल 200 घड़ियाल बचे थे। इनमे भारतीय प्रजाति के घड़ियालों के सर्वे में 46 घड़ियाल चंबल में मिले थे। इसके बाद 80 के दशक में चंबल नदी के 485 किलोमीटर क्षेत्र को घड़ियाल अभयारण्य घोषित किया गया। इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए देवरी पर घड़ियाल केंद्र बनाया गया।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक चंबल नदी में वर्ष 2019 में 1876 घड़ियाल पाए गए थे। 2020 में चंबल नदी के 435 किलोमीटर दायरे में की गई गिनती में घड़ियालों की संख्या 1859 रह गई थी। इसके बाद में वर्ष 2021 में हुई गिनती में चंबल में एक साल में 317 घड़ियाल बढ़े थे, जिससे घड़ियालों की संख्या 2176 हो गई थी।