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भारत को स्वतंत्रता दिलाने के संघर्ष में कई सेनानियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हीं में से एक प्रमुख नाम था सरोजिनी नायडू का, जिन्हें “भारत की कोकिला“ के रूप में सम्मानित किया गया। सरोजिनी नायडू केवल एक प्रसिद्ध कवित्री, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ ही नहीं, बल्कि भारतीय महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक भी थीं। 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में जन्मी सरोजिनी नायडू का योगदान भारतीय राजनीति, साहित्य और समाज सुधार में अविस्मरणीय है। हर वर्ष 13 फरवरी को उनकी जयंती राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाई जाती है।
राजनीति में प्रवेश:
सरोजिनी नायडू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई। गोपाल कृष्ण गोखले से प्रेरणा लेकर, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों के लिए कार्य किया। 1925 में सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और इस पद पर आसीन होने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। 1930 में, नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेकर उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं के साथ जेल यात्रा की। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 21 महीने तक जेल में रहीं। 1947 में, सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
समाज में योगदान:
सरोजिनी नायडू का महिलाओं के अधिकारों के प्रति समर्पण उल्लेखनीय था। इसलिए उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है |
विधवाओं के अधिकार:
1908 में भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन के 22वें सत्र में, सरोजिनी नायडू ने विधवाओं के लिए शिक्षा की सुविधाएं, महिला गृहों की स्थापना और विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। यह कार्य उन्होंने उस समय किया जब ये विषय विवादास्पद थे।
वोट देने का अधिकार: – 1917 में, सरोजिनी नायडू ने एनी बेसेंट और अन्य के साथ मिलकर महिला भारतीय संघ (WIA) की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाना था।
प्रतिनिधित्व का अधिकार:
नायडू ने महिला भारतीय संघ (WIA) और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की स्थापना की। दोनों संगठनों ने भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में, AIWC ने ब्रिटिश संसद द्वारा प्रस्तावित सांप्रदायिक चुनावों के बजाय गैर-सांप्रदायिक चुनावों के लिए दबाव डाला।
साहित्यिक योगदान:
सरोजिनी नायडू को बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। उनकी कविताओं की विशेषता उनकी गीतात्मकता और गहरी भावना में थी। उन्होंने प्रेम, प्रकृति और देशभक्ति के विषयों पर कविताएं लिखीं, जिसमें भारतीय विषयों और पश्चिमी साहित्यिक रूपों का सुंदर संयोजन देखा गया। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
द गोल्डन थ्रेशोल्ड (1905) – इस संग्रह में “पालनक्विन बियरर्स“ और “इंडियन वीवर्स“ जैसी कविताएं शामिल हैं।
द बर्ड ऑफ टाइम (1912) – इसमें “इन द बाज़ार्स ऑफ़ हैदराबाद“ जैसी प्रसिद्ध कविताएं हैं।
द ब्रोकन विंग (1917) – इस संग्रह में “द गिफ्ट ऑफ इंडिया“ कविता शामिल है, जो प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों को समर्पित है।
सेप्ट्रेड फ्लूट सॉन्ग्स ऑफ इंडिया (1928) – इस संग्रह में उनके राष्ट्रवादी उत्साह और भारत के प्रति प्रेम को दर्शाने वाली कविताएं हैं।
निधन:
सरोजिनी नायडू का 2 मार्च 1949 को लखनऊ में हृदयाघात के कारण निधन हो गया।
सरोजिनी नायडू का जीवन प्रेरणादायक था और उनके द्वारा किए गए संघर्ष और योगदान हमेशा भारतीय इतिहास में याद किए जाएंगे।